आत्मनः प्रतिकूलानि परेभ्यो यदि नेच्छसि।
परेषां प्रतिकूलेभ्यो, निवर्तय ततो मनः॥
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इस श्लोक में कवि कहते है कि - धर्म का सर्वस्व जिसमे समाया है उसके सार को सुनिए तथा जो आपके मन प्रतिकूल आचरण लगे वैसा व्यवहार दूसरों के साथ न करिए
मै आशा करती हूं कि इससे आपकी कुछ सहाअता हो।
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