आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।.
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'धर्म का सर्वस्व जिसमें समाया है, ऐसे धर्म का सार सुनिए और सुनकर हृदय में उतारिए कि अपनी आत्मा को जो दुःखदायी लगे, वैसा आचरण दूसरों के साथ मत करिए। '
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आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।.
पूरा श्लोक इस प्रकार है
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि , परेषां न समाचरेत् ॥
अर्थ : जो धर्म का सर्वस्व है, उसे ध्यान से सुनो और सुनकर धर्म के अनुसार चलो।धर्म के अनुसार आचरण करो।
जो स्वयं को अच्छा न लगता हो, वैसा आचरण दूसरे के साथ भी नहीं करना चाहिए अर्थात जो बात स्वयं को नहीं पसंद हो, वह हम दूसरों के साथ कैसे कर सकते है |
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