आत्मनिर्भरता पर एक अनुच्छेद लिखिए जिसके शब्द सीमा 80 से 100 शब्द की हो
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मनुष्य को जीवन में दूसरों पर भरोसा न कर आत्म निर्भर और आत्म विश्वासी होना चाहिए । दूसरे शब्दों में आत्म-सहायता ही उसके जीवन का मूल सिद्धांत, मूल आदर्श एवं उसके उद्देश्य का मूल-तंत्र होना चाहिए । असंयत स्वभाव तथा मनुष्य का परिस्थितियों से घिरा होना, पूर्णरूपेण आत्मविश्वास के मार्ग को अवरूद्ध सा करता है ।
वह समाज में रहता है जहां पारस्परिक सहायता और सहयोग का प्रचलन है । वह एक हाथ से देता तथा दूसरे हाथ से लेता है । यह कथन एक सीमा तक उचित प्रतीत होता है । ऐसा गलत प्रमाणित तब होता है जब बदले में दिया कुछ नही जाता सिर्फ लिया भर जाता है और जब अधिकारों का उपभोग विश्व में बिना कृतज्ञता का निर्वाह किए, भिक्षावृत्ति तथा चोरी और लूट-खसोट में हो, लेकिन विनिमय न हो ।
फिर भी पूर्ण आत्म-निर्भरता असंभव सी है । जीवन में ऐसे सोपान आते हैं, जब आत्म विश्वास को जागृत किया जा सकता है । स्वभावतया हम दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं । हम जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता, सहानुभूति, हमदर्दी, नेकी पर विश्वास करते हैं, लेकिन यह आदत हानिकारक है । इससे हमारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावना का ह्रास होता है । यह आदत हममें निज मदद हीनता की भावना भर देती है ।
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छोटे बड़े जानवरों या पक्षियों को भी देखें तो हमें पता चलता है कि वे सभी आत्मनिर्भर है। उन्हें अपने भोजन के लिए किसी दूसरे पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कोई भी दूसरा व्यक्ति उन्हें खाना लाकर नहीं देता। उनके जन्म लेते ही उनके मां-बाप उन्हें छोड़ देते हैं और वे अपने सारे काम स्वयं करना सीखते हैं।
खिलाड़ियों को जीत का स्वाद चखने के लिए स्वयं खेलना पड़ता हैं । किसान जब कड़ी मेहनत के बाद खेत में तैयार फ़सल को काटता है तो उसे एक अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है। इसी तरह, यदि विद्यार्थी अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता हैं तो उन्हें स्वयं परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा। परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वयं अध्ययन करना होगा । इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में उसे ही सफलता मिलती हैं, जो आत्मनिर्भर होता है|