आत्मपरिचय
मैं जग-जीवन
लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
मैं स्नेह-सुरा
पान किया करता हूँ
मैं कभी न जग ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते.
मैं अपने मन गान किया करता हूँ।
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