आत्मत्राण नामक कविता में कवि ईश्वर को कैसा मानता है
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प्रत्येक व्यक्ति जीवन के संघर्षों में छुटकारा चाहता है परंतु इस कविता में कवि किसी भी प्रकार की सहायता की इच्छा नहीं करता, उसकी कामना केवल निर्भय, स्वस्थ व अविजित होने की है| वह ईश्वर को दु:ख की हर घडी में भी याद करना चाहता है, वह सदैव आत्मविश्वास, धैर्य, शक्ति, पुरूषार्थ व हिम्मत बनाए रखने व निर्भय होकर जीवन जीने की प्रार्थना करते है|
Explanation:
कविता में कवि प्रभु से दुख दूर करने की प्रार्थना नहीं करता है बल्कि वह स्वयं अपने साहस और आत्मबल से दुखों को सहना चाहता है तथा उनसे पार पाना चाहता है। वह दुखों से मुक्ति नहीं, बल्कि उसे सहने और उबरने की आत्मशक्ति चाहता है। इस कविता में निहित संदेश यह है कि हम अपने दुखों के लिए प्रभु को जिम्मेदार न ठहराएँ l
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