आत्मविश्वास और घमंड पर अनुच्छेद ५० से १०० शब्द
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मेरे जीवन में अक्सर मुझे लगता है कि मुझे आत्मविश्वास और अहंकार के बीच अमूर्त रेखा को खोजने में परेशानी होती है। यह मूंगफली का मक्खन सैंडविच बनाने की कोशिश करने जैसा है: यदि आप मूंगफली का मक्खन बहुत पतला फैलाते हैं, तो आपके पास कुछ होने लायक नहीं है, लेकिन यदि आप इसे बहुत मोटी फैलाते हैं, तो आप जानते हैं कि आपको इसका पछतावा होगा। मैं जीवन में बहुत सी अलग-अलग चीजों को महत्व देता हूं, और उन्हें महारत हासिल करने के अपने प्रयासों में मैं आमतौर पर सफल रहा हूं। इस सफलता ने मेरी खुद की क्षमताओं में एक निश्चित स्तर का विश्वास पैदा किया है, लेकिन अक्सर मैंने अचानक अपने मुंह की छत पर चिपके अहंकार को महसूस किया है। यह इतना बुरा नहीं होगा, लेकिन कई बार यह मुस्कुराना मुश्किल कर देता है।
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आत्मविश्वास या घमंड इन दो शब्दों के बीच जरा सा अंतर है। मैं यह कर सकता हूं, यह मेरा विश्वास है और सिर्फ मैं ही यह कर सकता हूं यह घमंड है। बात बहुत मजेदार और एक बडा सत्य है। इस बात को मैंने भी अपनी जिंदगी में देखा है और आप में से भी कई लोगों ने महसूस किया होगा। मैं इस बात को काफी पहले से जानता हूं औरमानता हूं कि कभी कभी अति आत्मविश्वास में आदमी घमंडी हो जाता है।यह सीधा सा फंडा मुझे एक बार फिर याद आयाआमिर खान की नई फिल्मगजनीदेखने के बाद। फिल्म में अपनी कंपनी एयर वायस सेल्यूलर के एमडी के रूप में बोर्ड मीटिंग में आमिर यह बात कहते नजर आते हैं। शायद आमिर इस बात को अच्छी तरह पचा चुके हैं। इसलिए वे आत्मविश्वासी है पर घमंडी नहीं।(पर यह बात शायद अपने शाहरुख और यशराज बैनर वाले नहीं जानते। अपना सिक्का चलता देख सिर्फ 18 दिनों में बिना मेहनतके लिखी गई कहानी पर एक अवश्विसनीय फिल्म रब ने बना दी जोडी बना दी। और ये घमंड उन्हें ले बैठा)नया साल चंद घंटों में आने वाला है। हम इसमें यह वचन लें कि अपने आत्मविश्वास को घमंड में न बदलने दें और जिंदगी को यूं ही चलने दें।पथ परचलते रहो निरंतर.सूनापन होया निर्जन होपथ पुकारता है गत-स्वन होपथिक,चरण ध्वनि सेदो उत्तरपथ परचलते रहो निरंतर ....!(जनकवि त्रिचोलन के संकलन से साभार).
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