आत्मविश्वास और घमंड विषय पर शिक्षकों के बीच संवाद लिखिए
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शिक्षक-1: अरे! दीपक सर, कैसे हैं आप?
शिक्षक-2: मैं तो कुशल मंगल हूँ, कुनाल सर, आप कैसे
हैं?
कुनाल सर: मैं भी सकुशल हूँ। आपको ज्ञात है, दीपक
सर, मेरे एक छात्र ने कक्षा की परीक्षा में सबसे अधिक
अंक प्राप्त किए! किंतु, वह अब सबको जा जाकर यह
बताए चले जा रहा है।
दीपक सर: अरे! उसमें तो कोई आपत्ति नहीं है। वह तो
केवल ख़ुशियाँ मना रहा है! कोई आपत्ति नहीं! आपत्ति तो
तब होती है, जब वह स्वयं को दूसरों से अधिक बुद्धिमान
मान ले और सबको स्वयं से निम्न समझना शुरू कर दे।
क्योंकि तब ही जन्म लेता है घमंड।
कुनाल सर: आप सर्वथा उचित बात कह रहे हैं। स्वयं की
सफलता के लिए स्वयं को शाबाशी देना कोई बुरी बात
नहीं है। यह तो आत्मविश्वास है और यह होना भी चाहिए।
किंतु यदि व्यक्ति दूसरों को नीच समझना शुरू
कर दे, तब उसे सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि तब ही
उसके मन में अहंकार जागृत होती है। यही अंतर होता है
आत्मविश्वास और अहंकार में।
दीपक सर: शत प्रतिशत सत्य है आपका कथन, कुनाल
सर! और इसी घमंड के कारण व्यक्ति अपना वास्तविक
सुंदर अस्तित्व खो बैठता है। सब उससे घृणा करने लग
जाते हैं।
कुनाल सर: एकदम सच! और कई लोग उस व्यक्ति से
ईर्ष्या करने लग जाते हैं और यह भावना अनुचित है। यदि
उसी व्यक्ति के मन में अहंकार की जगह आत्मविश्वास हो,
तो लोग उससे ईर्ष्या नहीं करेंगे, अपितु प्रेरणा लेंगे। अब
भला इससे अच्छी बात और हो भी क्या सकती है।
दीपक सर: मानना पड़ेगा कुनाल सर, आपकी बातें बहुत
अच्छी लगती हैं मुझे! चलिए, अब मैं चलता हूँ।
कुनाल सर: आपका बहुत बहुत धन्यवाद, दीपक सर!
आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। अलविदा!
Hope I helped you :)
शिक्षक-2: मैं तो कुशल मंगल हूँ, कुनाल सर, आप कैसे
हैं?
कुनाल सर: मैं भी सकुशल हूँ। आपको ज्ञात है, दीपक
सर, मेरे एक छात्र ने कक्षा की परीक्षा में सबसे अधिक
अंक प्राप्त किए! किंतु, वह अब सबको जा जाकर यह
बताए चले जा रहा है।
दीपक सर: अरे! उसमें तो कोई आपत्ति नहीं है। वह तो
केवल ख़ुशियाँ मना रहा है! कोई आपत्ति नहीं! आपत्ति तो
तब होती है, जब वह स्वयं को दूसरों से अधिक बुद्धिमान
मान ले और सबको स्वयं से निम्न समझना शुरू कर दे।
क्योंकि तब ही जन्म लेता है घमंड।
कुनाल सर: आप सर्वथा उचित बात कह रहे हैं। स्वयं की
सफलता के लिए स्वयं को शाबाशी देना कोई बुरी बात
नहीं है। यह तो आत्मविश्वास है और यह होना भी चाहिए।
किंतु यदि व्यक्ति दूसरों को नीच समझना शुरू
कर दे, तब उसे सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि तब ही
उसके मन में अहंकार जागृत होती है। यही अंतर होता है
आत्मविश्वास और अहंकार में।
दीपक सर: शत प्रतिशत सत्य है आपका कथन, कुनाल
सर! और इसी घमंड के कारण व्यक्ति अपना वास्तविक
सुंदर अस्तित्व खो बैठता है। सब उससे घृणा करने लग
जाते हैं।
कुनाल सर: एकदम सच! और कई लोग उस व्यक्ति से
ईर्ष्या करने लग जाते हैं और यह भावना अनुचित है। यदि
उसी व्यक्ति के मन में अहंकार की जगह आत्मविश्वास हो,
तो लोग उससे ईर्ष्या नहीं करेंगे, अपितु प्रेरणा लेंगे। अब
भला इससे अच्छी बात और हो भी क्या सकती है।
दीपक सर: मानना पड़ेगा कुनाल सर, आपकी बातें बहुत
अच्छी लगती हैं मुझे! चलिए, अब मैं चलता हूँ।
कुनाल सर: आपका बहुत बहुत धन्यवाद, दीपक सर!
आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। अलविदा!
Hope I helped you :)
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