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युद्ध की आशंका और सीमा के दोनों तरफ सैन्य तैयारियों का जायजा लेते सैन्य-प्रमुखों की खबरों के बीच अमन की आशा जगाती एक अच्छी सूचना आयी है. उड़ी के सैन्य शिविर पर पाक प्रेरित आतंकियों के हमले और इसके प्रतिकार में आतंकी ठिकानों पर भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पहली बार दोनों पक्षों के बीच बढ़ रहे तनाव को कम करने के लिए भारत और पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकारों ने आपस में बातचीत की है.
इस खबर को अमेरिकी विदेश-विभाग की तरफ से आयी सलाह की रोशनी में देखा जाना चाहिए. सलाह में कहा गया है कि दोनों देश बढ़ रहे तनाव को कम करने के लिए कम-से-कम सैन्य-स्तर पर संवाद कायम रखें. दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के सूरते-हाल में अमेरिका पहले भी इस तरह की सलाह देता रहा है.
बेशक उसी की कूटनीतिक कोशिशों के बीच कारगिल-युद्ध समाप्त हुआ और दोनों देशों के बीच एक हद तक शांति की स्थिति बनी, जिसका एक बड़ा उदाहरण है सन् 2000 के दशक के कुछ वर्षों में नियंत्रण रेखा पर कायम सीजफायर की स्थिति. अजित डोभाल और निसार जंजुआ के बीच बातचीत बेशक अमेरिकी सलाह के साये तले हुई हो, लेकिन अब के हालात पहले जैसे नहीं हैं. सर्जिकल स्ट्राइक की बात स्वीकार करके भारत ने पाकिस्तान सहित विश्व-बिरादरी के अन्य देशों को संदेश दिया है कि पाक प्रेरित आतंकवाद के खात्मे की पुरानी रक्षात्मक नीति पर चलना उसे स्वीकार नहीं और अपने हितों की रक्षा के लिए भारत आक्रामक तेवर भी अपना सकता है.
जाहिर है, भारत के ऐसे रुख के बाद दोनों देशों के बीच कोई संवाद कायम होता है, तो उसका विषय पाक प्रेरित आतंकवाद ही होगा, ना कि कश्मीर का मसला, जिसकी रट अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान लगाये रहता है. फिलहाल नियंत्रण-रेखा पर मौजूद हालात के भी संकेत यही हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी भारत के विरुद्ध आतंकियों को शह देने से पाक बाज नहीं आ रहा. बारामूला के सैन्य-शिविर पर हुआ आतंकी हमला इसी की नजीर है.
बीते अप्रैल से सितंबर के बीच कम-से-कम 81 आतंकियों ने पाकिस्तान की शह पर भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की, जबकि 2015 की इसी अवधि में 31 आतंकियों ने घुसपैठ के प्रयास किये थे. उम्मीद है कि घुसपैठ की बढ़ी कोशिशों और नियंत्रण-रेखा पर पाक सेना की तरफ से हो रहे सीजफायर के उल्लंघन के बीच सुरक्षा सलाहकारों के बीच होनेवाली बातचीत में पाक प्रेरित आतंकवाद के मुद्दे को आगे रखने में भारत को सफलता मिलेगी.
इस खबर को अमेरिकी विदेश-विभाग की तरफ से आयी सलाह की रोशनी में देखा जाना चाहिए. सलाह में कहा गया है कि दोनों देश बढ़ रहे तनाव को कम करने के लिए कम-से-कम सैन्य-स्तर पर संवाद कायम रखें. दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के सूरते-हाल में अमेरिका पहले भी इस तरह की सलाह देता रहा है.
बेशक उसी की कूटनीतिक कोशिशों के बीच कारगिल-युद्ध समाप्त हुआ और दोनों देशों के बीच एक हद तक शांति की स्थिति बनी, जिसका एक बड़ा उदाहरण है सन् 2000 के दशक के कुछ वर्षों में नियंत्रण रेखा पर कायम सीजफायर की स्थिति. अजित डोभाल और निसार जंजुआ के बीच बातचीत बेशक अमेरिकी सलाह के साये तले हुई हो, लेकिन अब के हालात पहले जैसे नहीं हैं. सर्जिकल स्ट्राइक की बात स्वीकार करके भारत ने पाकिस्तान सहित विश्व-बिरादरी के अन्य देशों को संदेश दिया है कि पाक प्रेरित आतंकवाद के खात्मे की पुरानी रक्षात्मक नीति पर चलना उसे स्वीकार नहीं और अपने हितों की रक्षा के लिए भारत आक्रामक तेवर भी अपना सकता है.
जाहिर है, भारत के ऐसे रुख के बाद दोनों देशों के बीच कोई संवाद कायम होता है, तो उसका विषय पाक प्रेरित आतंकवाद ही होगा, ना कि कश्मीर का मसला, जिसकी रट अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान लगाये रहता है. फिलहाल नियंत्रण-रेखा पर मौजूद हालात के भी संकेत यही हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी भारत के विरुद्ध आतंकियों को शह देने से पाक बाज नहीं आ रहा. बारामूला के सैन्य-शिविर पर हुआ आतंकी हमला इसी की नजीर है.
बीते अप्रैल से सितंबर के बीच कम-से-कम 81 आतंकियों ने पाकिस्तान की शह पर भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की, जबकि 2015 की इसी अवधि में 31 आतंकियों ने घुसपैठ के प्रयास किये थे. उम्मीद है कि घुसपैठ की बढ़ी कोशिशों और नियंत्रण-रेखा पर पाक सेना की तरफ से हो रहे सीजफायर के उल्लंघन के बीच सुरक्षा सलाहकारों के बीच होनेवाली बातचीत में पाक प्रेरित आतंकवाद के मुद्दे को आगे रखने में भारत को सफलता मिलेगी.
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