Hindi, asked by sharonrego14, 8 months ago

aatankwad aur samaj par niband​

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Answered by adityaraj6843
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Answer:

नात्सीज्म और फासीज्म आतंक समर्थक विचाराधाराएं थीं। व्यक्ति और समाज को भय तोड़ता है, खोखला करता है और आतंक की ओर खींच ले जाता है। आतंक भयानक वन है, जो हिंसक वन्य पशुओं के रहने का स्थान है। उस भयावह वन को हमने शहरों में उगा दिया है। उसकी जड़े मन में गहरी उतर चुकी हैं।

आतंक घनेवन की तरह स्याह होता है और चीत्कारों से भरा रहता है। आतंक में अंधेरा फैलता है, संशय वाले नाग की तरह निरंतर फूत्कारता रहता है और मृत्यु का तांडव होता रहता है। जब सभ्यता मद्य छके हाथी की तरह कू्रर होने लगती है, तब संस्कृति पर सीधा प्रहार होता है।

संस्कृति किसी समाज की आत्मा है। आत्मारहित समाज मांस पिंड है, निर्जीव और निष्क्रिय है। अंगुलिमाल एक डाकू था जो लोगों की अंगुलियां काटता था और उन अंगुलियों की माला गले में पहने रहता था अपितु अंगुलिमाल का आतंक ही था जो समाज के मन पर फन फैलाए नाग सा हरदम छाया रहता था। उसे महात्मा बुद्ध ने दूर किया। अंगुलिमाल रास्ते पर आ गया। उसका नशा उतर गया। फिर, सब कुछ सामान्य हो गया नागरिक भयमुक्त हो गए।

आज फिर आतंक-दैत्य दहाड़ रहा है। उसकी काली परछाइयां निर्जन में अट्टाहस कर रही है। कोई है जो उसको संभाल सके। इस अंगुलिमाल को कौन चेत में लाएगा।

राजा तक भी था, सेना भी थी और शक्ति का जोश भी, परंतु तब ये सब मिलकर भी अंगुलिमाल को वश में नहीं कर सके। व्यवस्था ने घुटने टेक दिए थे। सब विवश थे, सामाजिक किंकर्तव्यविमूढ़ थे।

तब भी शक्ति से अंगुलिमाल का दमन करना चाहा था, पर प्रयास निष्फल रहा। उसका कोर्ठ राजनीतिक हल भी नहीं था। समझौते का तो प्रश्न ही नहीं था।

बुद्ध तो एक महात्मा ही थे, न तो उनके पास कोई सेना थी और न ही दमन-चक्र की कोई योजना। वे निहत्थे थे। वे निर्भिक थे। वे औरों की तरह शुतुरमुर्ग नहीं थे। डरना वे जानते ही नहीं थे। यही तो उनको बौद्ध-वृक्ष के नीचे महाबोध हुआ था। न बुढ़ापा डर का निमित है, न रोगग्रस्त अवस्था और न मृत्ये। जब इन सबका अस्तित्व ही नहीं फिर डर किससे और क्यों। डर गया कि महाबोधि के आलौकिक प्रकाश ने नवमार्गोन्मुख बना डाला। ‘लौट जाओ, गौतम ! यह संदेश उन प्राणियों को भी जागर दो जो अपना सामना करने का साहस खो चुके हैं और जो जीवित होते हुए भी अपने जीने से इनकार कर रहे हैं।’ तभी तो महात्मा बनकर लौटे थे बुद्ध। आत्मा का आत्मा से साक्षात्कार ही तो महात्मा है।

Explanation:

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Happy Raksha Bandhan to all my crazy sisters.

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