आदिकाल की प्रमुख धाराओं का संक्षेप में परिचय दीजिए
Answers
Answer:
आदिकाल की प्रमुख धारणाओं
आदिकाल का समय 1050 से 1375 तक का माना जाता है | इसे आचार्य रामचंद्र शुल्क ने वीरगाथा कल कहा | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल से नामकरण किया |
आदिकाल युग में तीन रसों का निर्वाह हुआ है : वीर रस (चारण काव्य ), श्रृंगार रस (चारण काव्य तथा विद्या पति की पदावली और कीर्ति लता में) तथा शांत रस ( धार्मिक साहित्य में) ।
ऐतिहासिक व्यक्तियों के आधार पर चरित काव्य लिखे गए जैसे - पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता , खुमान रासो , बीसलदेव रासो , परमल रासो , विजयपाल रासो , हम्मीर रासो आदि
लौकिक रस की रचनाएँ : लौकिक-रस से सजी-संवरी रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति रही ; जैसे - संदेश-रासक, विद्यापति पदावली, कीर्तिपताका आदि ।
युद्धों का यथार्थ चित्रण : वीरगाथात्मक साहित्य में युद्धों का सजीव और ह्रदयग्राही चित्रण हुआ है ।
इस युग की कृतियों में प्रायः: सभी अलंकारों का समावेश मिलता है । पर प्रमुख रूप से उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा ,अतिश्योक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ ।
इस युग में तीन रसों का निर्वाह हुआ है : वीर रस (चारण काव्य ), श्रृंगार रस (चारण काव्य तथा विद्यापति की पदावली और कीर्तिलता में) तथा शांत रस ( धार्मिक साहित्य में) ।
Answer:
आदिकाल की प्रमुख धाराओं का संक्षेप में परिचय-
Explanation:
आदिकाल की प्रमुख धाराओं का संक्षेप में परिचय-
1) आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ- आदिकाल को वीरगाथा काल के नाम से भी जाना गया है, यद्यपि अनेक विद्वानों ने इस काल को कई नामों से सम्बोधित किया है, यथा-सिद्ध सामन्त युग, चारण काल, आधार काल, नवजागरण काल, संक्रमण काल और संयोजन काल आदि।
2) हिन्दी काव्य के आरंभिक काल में काव्य की विविध प्रवृत्तियों का उदय हुआ, इस दृष्टि से ‘आदिकाल’ कहना समाचीन है।
3) यह नाम आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा दिया गया है।
4) इस काल के राजनीतिक वातावरण तथा काव्य में वीर भावना की प्रधानता के आधार पर इस काल को वीरगाथा काल कह दिया गया है।
#SPJ2