Hindi, asked by nibhapriya1997, 1 year ago

आदिकाल की प्रतिनिधि रचनाओं का उल्लेख करें

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Answered by jadhav50
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हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग ८वीं शताब्दी से लेकर १४वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीजवपन काल। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और राहुल संकृत्यायन ने सिद्ध-सामन्त काल।

इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है :

सिद्ध-साहित्य तथा नाथ-साहित्य,

जैन साहित्य,

चारणी-साहित्य,

प्रकीर्णक साहित्य।

Answered by Anonymous
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आदिकाल की प्रतिनिधि रचनाओं का उल्लेख

इस प्रकार है :-

• जैन साहित्य

- जैन धर्म को विख्यात करने के वजह से

जो साहित्य की रचना हुई उसे जैन

साहित्य का नाम दिया गया है ।

- कवि :- स्वयंभू , हेमचंद्र आदि

- रचना :- पउम-चरिउ , आदि

- भाषा :- प्राचीन राजस्थानी

• नाथ साहित्य

आराध्या - शिव

आधार - शैव दर्शन

- यह शिव के उपासक थे ।

- शुद्ध आचरण पर बल देते थे ।

आदि पुरुष - आदिनाथ

कवि - गोरखनाथ

रचना - गोरखबानी

भाषा - खड़ी बोली जिसमें पंजाबी,

राजस्थानी का पुट भी है ।

• सिद्ध साहित्य

-यह बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से है ।

- यह पूर्वी भारत में सक्रिय थे ।

कवि - सरहपा

रचना - दोहाकोषगीति

• रासो साहित्य

रासो साहित्य की विशेषताएं :-

- युद्ध का सजीव वर्णन

- ऐतिहासिकता का अभाव

- वीर रस को मुख्य स्थान दिया

रचनाएं :-

- पृथ्वीराज रासो

- खुमाण रासो

- परमाल रासो

- बीसलदेव रासो , आदि।

कवि :-

- चंदबरदाई

- जगनिक , आदि ।

भाषा - पिंगल ( तत्कालीन राजस्थान का

ब्रजभाषा )

नोट:- चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो,

रासो काव्य में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता

है। पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य

है । तथा चंदबरदाई हिंदी के प्रथम महाकाव्य

के लेखक है ।

• प्रकीर्णक साहित्य

कवि -

खुसरो , विद्यापति, अब्दुल रहमान

आदि ।

रचनाएं (भाषा) -

खुसरो की पहेलियां और मुकरियां ( खड़ी बोली), विद्यापति कि - पदावली( मैथिली)

गंगावाक्यावली ( संस्कृत )

किर्तिलता और कीर्तिपताका

( अपभ्रंश ) ।

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