आदिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए
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आदिकाल की रचनाओं के आधार पर इस युग के साहित्य में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ दिखाई पड़ती हैं :-
1.ऐतिहासिक काव्यों की प्रधानता : ऐतिहासिक व्यक्तियों के आधार पर चरित काव्य लिखने का चलन हो गया था । जैसे - पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता आदि । यद्यपि इनमें प्रामाणिकता का अभाव है ।
2.लौकिक रस की रचनाएँ : लौकिक-रस से सजी-संवरी रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति रही ; जैसे - संदेश-रासक, विद्यापति पदावली, कीर्तिपताका आदि ।
3.रुक्ष और उपदेशात्मक साहित्य : बौद्ध ,जैन, सिद्ध और नाथ साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति है, इनके साहित्य में रुक्षता है । हठयोग के प्रचार वाली रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति इनमें अधिक रही ।
4.उच्च कोटि का धार्मिक साहित्य : बहुत सी धार्मिक रचनाओं में उच्चकोटि के साहित्य के दर्शन होते हैं ; जैसे - परमात्म प्रकाश, भविसयत्त-कहा, पउम चरिउ आदि ।
5.फुटकर साहित्य : अमीर खुसरो की पहेलियाँ, मुकरी और दो सखुन जैसी फुटकर (विविध) रचनाएँ भी इस काल में रची जा रही थी ।
6.युद्धों का यथार्थ चित्रण : वीरगाथात्मक साहित्य में युद्धों का सजीव और ह्रदयग्राही चित्रण हुआ है । कर्कश और ओजपूर्ण पदावली शस्त्रों की झंकार सुना देती है ।
7.आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा, उनके युद्ध, विवाह आदि का विस्तृत वर्णन हुआ है, लेकिन राष्ट्रीयता का अभाव रहा ।
8.पारस्परिक वैमनस्य का प्रमुख कारण स्त्रियाँ थी । उनके विवाह एवं प्रेम प्रसंगों की कल्पना तथा विलास-प्रदर्शन में श्रृंगार का श्रेष्ठ वर्णन और उन्हें वीर रस के आलंबन-रूप में ग्रहण करना इस युग की विशेषता थी । स्पष्टत: वीर रस और श्रृंगार का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है ।
9.चरित नायकों की वीर-गाथाओं का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करने में ऐतिहासिकता नगण्य और कल्पना का आधिक्य दिखाई देता है ।
10.चीजों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन होने की वजह से वर्णनात्मकता का आधिक्य है ।
11.प्रबंध (महा काव्य और खंडकावय) एवं मुक्तक दोनों प्रकार का काव्य लिखा गया । खुमान रासो, पृथ्वीराज रासो प्रबंध काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । बीसलदेव रासो मुक्तक काव्य का श्रेष्ठ उदाहरण है ।
12.रासो ग्रंथों की प्रधानता रही ।
13.अधिकतर रचनाएँ संदिग्ध हैं ।