आदिम मानव खानाबदोश
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लंबे वक्त तक यह माना जाता रहा कि गुफा में रहने वाले मानव सिर्फ मांस खाते थे. लेकिन अब यह भ्रम साबित हो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पाषाण युग के इंसान फल, जड़ें, फलों के गूदे और मांस खाते थे. वैज्ञानिकों की एक रिसर्च टीम कहती है कि अगर गुफा मानव की खुराक का हिसाब मिल जाए, तो 21वीं सदी के इंसान की कई तकलीफें दूर हो जाएंगी. पौष्टिकता के आधार पर आहार और डाइट की सही पहचान हो सकेगी.
25 लाख साल पहले से लेकर 12,000 साल पहले के इस दौर में न आलू था, न ब्रेड थी. दूध का भी अता पता नहीं था. आज इन्हें मुख्य आहार माना जाता है. कृषि की शुरुआत को गुफा मानव के युग के बाद आज से करीब 10 हजार साल पहले हुई. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि किसकी डाइट बेहतर है. आदम इंसान की या हमारी. शरीर, कद काठी, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इशारा करता है कि गुफा में रहने वाले हमसे ज्यादा सेहतमंद थे.
यूनीलीवर कंपनी के लिए शोध की अगुवाई कर रहे वैज्ञानिक डॉक्टर मार्क बेरी कहते हैं कि उनका उद्देश्य आज के लोगों के लिए सेहतमंद खुराक तैयार करना है. वह कहते हैं, "पाषाण युग के आहार में कई तरह के पौधे शामिल थे. आज हम एक दिन ज्यादा से ज्यादा एक सब्जी या पांच फल खा लेते हैं. वे लोग एक दिन में 20 से 25 प्रकार की साग सब्जी खाया करते थे."
आज हम फसलें उगाते हैं और वह हमारे भोजन का अहम हिस्सा हैं. वहीं शताब्दियों पुराने इंसान कम कार्बोहाइड्रेट, कम वसा वाला खाना खाते थे. वह ज्यादा से ज्यादा साग सब्जियां खाते थे. अब सवाल उठता है कि स्वस्थ्य आहार कौन सा है. लंदन यूनिवर्सिटी में वंशानुगत बदलावों के प्रोफेसर मार्क थोमस कहते हैं कि गुफा मानव की डाइट ज्यादा बेहतर थी. पुराने शोध बताते हैं कि पत्थरों के सहारे अपनी रक्षा करने वाले गुफा मानवों को आहार की अधिकता संबंधी बीमारियां बहुत कम होती थी. उन्हें दो तरह की डायबिटीज नहीं थी, मोटापे का तो अता पता ही नहीं था. वैज्ञानिक दूध का उदाहरण देते हैं.
मार्क थोमास कहते हैं, "धीरे धीरे डाइट में कई बदलाव हुए. कई चीजें नई आई और कई गुम हो गई. दूध का ही उदाहरण ले लीजिए. 10 हजारसाल पहले इंसान ने दूध खोजा. पहले हम दूध को पचा नहीं पाते थे. लेकिन अब यह चीज आदत में ढल गई है. अब हम 100 फीसदी दूध या उससे बनी चीजें खाने पीने लगे हैं." वैज्ञानिकों के मुताबिक आदिमानव जिस तरह की साग सब्जियां खाते थे, उससे हमारा खाना एक दम अलग हो चुका है. आहार संबंधी मामलों की एक और विशेषज्ञ प्रोफेसर मोनिक सिमंड्स कहती हैं, "कृषि के विकास का मॉडल पैसा कमाने पर आधारित है. पौष्टिक आहार पैदा करने के बजाय अब ऐसी फसलों की पैदावार की जा रही है जिनका अंतरराष्ट्रीय बाजार है...गेहूं इसकी का उदाहरण है."
इस बात पर वैज्ञानिक एक मत हैं कि मौजूदा दौर में इंसान अनाज पर ज्यादा निर्भर हो गया है. अनाज की कई किस्में बाजार हैं. लेकिन शोधकर्ताओं को अफसोस है कि असली पौधे और उसके गुण इस बदलाव की भेंट चढ़ रहे हैं. शोध करने वालों का सुझाव है कि लोगों को चीनी और अति कार्बोहाइट्रेट वाले आहार से बचना चाहिए. उनकी जगह ऐसी चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें अनदेखा किया जा रहा है.
धीरे धीरे यह बात साफ होने लगी है कि खाने पीने की इन बदली आदतों ने कई नई और घातक बीमारियों को भी जन्म दिया है. यह भी एक वजह है कि आज का इंसान अपने पूर्वजों की तुलना में शारीरिक रुप से कमजोर हो चुका है. इसका प्रमाण देने के लिए कुछ वैज्ञानिक आदिवासियों का अध्ययन कर रहे हैं. अब भी पुराने तरीके से रहे रहे दुनिया भर के कई कबीलों में आंख, दांत, गले, दिल और फेफड़े की बीमारियां न के बराबर हैं. उनके अध्ययन के आधार पर कहा जा रहा है कि हमें गाजर, अंडे, चिकन, रसीले फल, बादाम, मूली, शलजम और अखरोट जैसी चीजें ज्यादा खानी चाहिए. शुरुआत में हमारे पाचन तंत्र को एक बदलाव से गुजरना होगा, लेकिन देर सबेर इस आहार का अच्छा असर सेहत पर पड़ने लगेगा.
Answer:
उन लोगों को जो शिकार करते थे और जिनका जीवन पौधों व फलों पर निर्भर था, स्थाई जीवन में परिवर्तित होने में लाखों साल लग गए। खाद्य-सग्राहक से खाद्य-उत्पादक तक की अवस्था तक पहुचँने में आदमी को करीब 3,00,000 साल लग गए। पंरन्तु एक बार यह सीखने के बाद मनुष्य नें बड़ी तेजी से उन्नति की। मनुष्य का अपने आसपास के वातावरण पर जितना अधिक नियंत्रण होता है, उतनी ही अधिक तेजी से वह उन्नति करता है।
आरंभ में लोग खानाबदोश थे, यानी वे भोजन और आश्रय की तालाश में झुंड बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। आमतौर पर एक झुंड में कुछ पुरुष, स्त्रियाँ तथा बच्चे होते थे। सुरक्षा की दृष्टि से, अकेले रहने की बजाए समूह बनाकर रहना बेहतर था। उन दिनों का जीवन सचमुच ही बड़ा कठिन था, क्योंकि लोग पेड़ो के फल-फूल, जंगली पौधे खाते थे और जो जानवर मिल जाते उनका शिकार करते थे। वे शाक-भाजी या अनाज पैदा करना नहीं जानते थे। इसलिए जब वे एक स्थान पर मिलने वाली सभी वस्तुऔं को खाकर खत्म कर देते, तो उन्हें भोजन की तालाश में अन्य किसी स्थान पर जाना पड़ता था। इसी प्रकार, जब वे एक स्थान पर पाए जाने वाले अधिकांश पशुओं का शिकार कर लेते तो शिकार की खोज में उन्हें दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था।
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