आदिवासी समुदाय वनों पर आश्रित है। इस कथन को समझाइए
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वन प्रकृति की देन है । किसी देश की सुरक्षा, समृद्धि और सुंदरता के लिए वनों का बहुत अधिक महत्व है । आदिवासी समुदाय का जीवन मूलतः वनों पर ही आश्रित होता है । फल -फूल ,शाक-पात,कंद -मूल ,गोंद, शहद आदि विभिन्न वस्तुएं आदिवासियों को वनों से ही प्राप्त होती हैं । उनके पशुओं के लिए चारा औषधि तथा जल आदि सामग्री प्रदान करने की महत्वपूर्ण भूमिका वनों द्वारा ही संपन्न होती हैं ।
आदिवासी समुदाय को जीवन गुजर - बसर करने में वनों से प्राप्त संपदा पूर्णत: सहायक होती हैं । आदिवासी लोग अपने आहार में कई प्रकार के जंगली जीव -जंतुओं को भी शामिल करते हैं जो कि उन्हें वनों से प्राप्त होता है । वन जलवायु को सम बनाते हैं और भूमि के कटाव को रोककर वर्षा को आकृष्ट करते हैं और इससे पानी के स्रोत भरे रहते है तथा वन हरे -भरे रहते है | हरे -भरे वनों में ही उनका जीवन फलता -फूलता है | वन ही उनकी संपदा है और वन ही उनके आवास | इन्हीं से आदिवासियों का जीवन सरलता पूर्वक निर्वहन होता है |
आदिवासी समुदाय वनों पर आश्रित रहता है, यह कथन अपने आप में सत्यता से पूर्ण है। आदिवासियों से तात्पर्य ही है, वनों में रहने वाले लोग। अर्थात जो समुदाय पारंपरिक समाज से दूर वनों में अपना निवास करता है, वही आदिवासी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। ऐसा समुदाय अक्सर परंपरागत समाज से कटा हुआ होता है और सामाजिक व आर्थिक रूप से यह लोग काफी पिछड़े हुए होते हैं।
क्योंकि ऐसा समुदाय पारंपरिक समाज से कटा होता है, इनमें पिछड़ापन होता है, अशिक्षा होती है, इस कारण यह लोग आधुनिकता की दौड़ से दूर होते हैं, और इन्हे आजीविक के नये और आधुनिक साधनों का ज्ञान नही होता। इसलिये यह आदिवासी लोग अपनी आजीविका के लिए वनों के संसाधनों पर निर्भर होते हैं और इनकी आजीविका वनाश्रित होती है। इसलिए इस कथन में बिल्कुल सच्चाई है कि आदिवासी समुदाय वनों पर आश्रित है।
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