आदिवासियों के हितों से संबंधित समस्याओं के बारे में संविधान सभा में हुई चर्चाआ
का विश्लेषण कीजिए।
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यह एक सच है कि भारत ने आज़ादी के आंदोलन और आज़ादी के समय साम्प्रदायिकता और छुआछूत-जातिगत शोषण की व्यवस्था के विषय पर बहस चरम पर थी, इन पर राजनीतिक चेतना भी ऊंचे मुकाम पर थी. इसके दूसरी तरफ भारत में आदिवासियों के हकों और अस्मिता के सवाल पर तुलनात्मक रूप से बहुत कम बहस और कम पहल हुई. दलित समुदाय, छुआछूत और जाति के विषय पर बहस गंभीर थी, और उसी में थोड़ा स्थान आदिवासी विषय को दिया गया. संविधान सभा में इस आदिवासी समुदाय के अधिकारों पर प्रावधान और व्यवस्था बनाने का काम अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उप-समिति के द्वारा करना तय हुआ था. इस समिति ने अल्पसंख्यकों को तीन भागों में बांटा था –
कक्षा अ – भारतीय संघ में रियासतों को छोड़कर आधे प्रतिशत के कम आबादी वाले यानी एंग्लो इंडियन, पारसी और आसाम के मैदानों में रहने वाले कबीले; कक्षा ई – वे जिनकी आबादी डेढ़ प्रतिशत से अधिक नहीं है यानी भारतीय ईसाई और सिख और कक्षा उ – वे जिनकी आबादी डेढ़ प्रतिशत से अधिक है यानी मुसलमान और परिगणित