Hindi, asked by rushikeshshinde91150, 2 months ago

आदमी को प्यास लगती हे कविता​

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Answered by teresasingh521
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Radhe❤️

आदमी को प्यास लगती है - ज्ञानेन्द्रपति - कविता कोश !!

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Answered by dreamrob
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आदमी को प्यास लगती हे कविता:

कालोनी के मध्यवर्ती पार्क में

जो एक हैण्डपम्प है

भरी दोपहर वहाँ

दो जने पानी पी रहे हैं

अपनी बारी में एक जना चाँपे चलाए जा रहा है हैण्डपम्प का हत्था

दूसरा झुक कर पानी पी रहा है ओक से

छक कर पानी पी, चेहरा धो रहा है वह बार-बार

मार्च-अखीर का दिन तपने लगा है, चेहरा सँवलने लगा है कण्ठ रहने लगा है हरदम ख़ुश्क

ऊपर, अपने फ़्लैट की खुली खिड़की से देखता हूँ मैं

थोड़ी देर पहले बजाई थी जिन्होंने मेरे घर की घण्टी

और दरवाज़ा खोलते ही मैं झुँझलाया था

भरी दोपहर बाज़ार की गोहार पर के चैन को झिंझोड़े

यह बेजा खलल मुझे बर्दाश्त नहीं

'दुनिया-भर में नम्बर एक' - या ऐसा ही कुछ भी बोलने से उन्हें बरजते हुए

भेड़े थे मैंने किवाड़

और अपने भारी थैले उठाए

शर्मिन्दा, वे उतरते गए थे सीढ़ियाँ

हैण्डपम्प पर वे पानी पी रहे हैं

उनके भारी थैले थोड़ी दूर पर रखे हैं एहतियात से, उन्हीं के ऊपर

तनिक कुम्हलाई उनकी अनिवार्य मुस्कान और मटियाया हुआ दुर्निवार उत्साह

गीले न हो जाएँ जूते-मोजे इसलिए पैरों को वे भरसक छितराए हुए हैं

झुक कर ओक से पानी पीते हुए

कालोनी की इमारतें दिखाई नहीं देतीं

वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पाद नहीं हैं

भारतीय मनुष्यों के उत्पाद हैं

वे भारतीय मनुष्य हैं -- अपने ही भाई-बन्द

भारतीय मनुष्य -- जिनका श्रम सस्ता है

विश्व-बाज़ार की भूरी आँख

जिनकी जेब पर ही नहीं

जिगर पर भी गड़ी है ।

#SPJ2

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