आदर्श विद्यार्थी पर निबंध 100 words
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एक आदर्श विद्यार्थी अपने स्कूल के साथ-साथ अपने माता-पिता और देश का नाम भी रोशन करता है ऐसे विद्यार्थी बचपन से ही बहुत होशियार होते हैं और इनके मुंह पर एक अलग सा ही तेज होता है. ऐसे विद्यार्थी हमेशा दूसरों के प्रति सेवा भावना रखते हैं.
ऐसे विद्यार्थियों को जो भी कार्य दिया जाता है वह पूरी एकाग्रता से करता है और कार्य पूरा होने तक अपना कर्तव्य निभाता है. आदर्श विद्यार्थी कर्मठ और ईमानदार होते है. ऐसे विद्यार्थी हमेशा कुछ ना कुछ सीखने की कोशिश करते रहते हैं अपने समय का सदुपयोग करते है.
आदर्श विद्यार्थी हमेशा सत्य का साथ देते है इन्हें झूठ से बहुत नफरत होती है. ऐसे ही झूठ बोलने वाले लोगों को सत्य बोलने के लिए प्रेरित करते है. विद्यार्थी हमेशा सभी की सहायता के लिए तत्पर रहते है. आदर्श विद्यार्थी हमेशा अपने जीवन में कुछ ना कुछ नियम बना कर चलता है और उनका पालन करता है.
ऐसे विद्यार्थी अपना जीवन अनुशासन में रहकर व्यतीत करते हैं वह कभी भी विद्यालय में उत्पात मचाते है. हमेशा अपने गुरुजनों की आज्ञा का पालन करते है और अपने माता-पिता, अपने से बड़े लोगों का हमेशा सम्मान करते है.
इन विद्यार्थियों को विलासिता की चीजों की लालसा नहीं होती है इन्हें तो सिर्फ अच्छी किताबें पढ़ने का शौख होता है. ऐसे विद्यार्थी महान लोगों की किताब पढ़कर उससे कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं और साथ ही अपने जीवन में भी इन बातों को उतारते है. जिससे भविष्य में ये सफलता के शिखर को छूते है.
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Explanation:
विद्यार्थी शब्द ‘विद्या + अर्थी’ शब्दों के योग से बना है जिसका अर्थ है विद्या प्राप्त करने का इच्छुक या अभिलाषी व्यक्ति। जब कोई बालक या व्यक्ति नियमित रूप से विद्या प्राप्त कर रहा होता है तो उसे विद्यार्थी कहा जाता है। प्राचीन भारत में बालक को गुरुकुल या आश्रम में शिक्षा दी जाती थी। इन स्थानों पर विद्वान तथा ऋषि-मुनि शिक्षक होते थे। उनका कार्य इस तरह समाज की सेवा करना था। उनके अधीन रहकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर युवक पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्या ग्रहण कर गृहस्थ में प्रवेश करता था। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज विद्यार्थी नए ढंग से नए वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।
विद्यार्थी शब्द ‘विद्या + अर्थी’ शब्दों के योग से बना है जिसका अर्थ है विद्या प्राप्त करने का इच्छुक या अभिलाषी व्यक्ति। जब कोई बालक या व्यक्ति नियमित रूप से विद्या प्राप्त कर रहा होता है तो उसे विद्यार्थी कहा जाता है। प्राचीन भारत में बालक को गुरुकुल या आश्रम में शिक्षा दी जाती थी। इन स्थानों पर विद्वान तथा ऋषि-मुनि शिक्षक होते थे। उनका कार्य इस तरह समाज की सेवा करना था। उनके अधीन रहकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर युवक पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्या ग्रहण कर गृहस्थ में प्रवेश करता था। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज विद्यार्थी नए ढंग से नए वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।विद्यार्थी का जीवन मनुष्य जीवन की आधारशिला है। उसे आरम्भ में जिस प्रकार की शिक्षा मिलेगी, जिस प्रकार का उसका वातावरण होगा, वह उसी के अनुसार ढलेगा। उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसका विद्यार्थी जीवन आदर्श होना चाहिए। शिक्षाविहीन व्यक्ति पशु के समान है। पशुत्व से मनुष्यता तक पहुंचने के लिए हर उच्च आदर्श उसको प्रदान करना माता-पिता, समाज तथा सरकार का कर्तव्य है। छात्र का जीवन तपस्या का जीवन है। इस जीवन में ही वह शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक गुणों का विकास करता है। जीवन के आरम्भ में यदि वह अनुशासन के नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन अवश्य सुखमय होगा। अत: आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) बनने के लिए उसके अन्दर आज्ञा पालन, अनुशासन एवं सद्बुद्धि अवश्य होनी चाहिए।
विद्यार्थी शब्द ‘विद्या + अर्थी’ शब्दों के योग से बना है जिसका अर्थ है विद्या प्राप्त करने का इच्छुक या अभिलाषी व्यक्ति। जब कोई बालक या व्यक्ति नियमित रूप से विद्या प्राप्त कर रहा होता है तो उसे विद्यार्थी कहा जाता है। प्राचीन भारत में बालक को गुरुकुल या आश्रम में शिक्षा दी जाती थी। इन स्थानों पर विद्वान तथा ऋषि-मुनि शिक्षक होते थे। उनका कार्य इस तरह समाज की सेवा करना था। उनके अधीन रहकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर युवक पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्या ग्रहण कर गृहस्थ में प्रवेश करता था। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज विद्यार्थी नए ढंग से नए वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।विद्यार्थी का जीवन मनुष्य जीवन की आधारशिला है। उसे आरम्भ में जिस प्रकार की शिक्षा मिलेगी, जिस प्रकार का उसका वातावरण होगा, वह उसी के अनुसार ढलेगा। उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसका विद्यार्थी जीवन आदर्श होना चाहिए। शिक्षाविहीन व्यक्ति पशु के समान है। पशुत्व से मनुष्यता तक पहुंचने के लिए हर उच्च आदर्श उसको प्रदान करना माता-पिता, समाज तथा सरकार का कर्तव्य है। छात्र का जीवन तपस्या का जीवन है। इस जीवन में ही वह शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक गुणों का विकास करता है। जीवन के आरम्भ में यदि वह अनुशासन के नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन अवश्य सुखमय होगा। अत: आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) बनने के लिए उसके अन्दर आज्ञा पालन, अनुशासन एवं सद्बुद्धि अवश्य होनी चाहिए।
विद्यार्थी शब्द ‘विद्या + अर्थी’ शब्दों के योग से बना है जिसका अर्थ है विद्या प्राप्त करने का इच्छुक या अभिलाषी व्यक्ति। जब कोई बालक या व्यक्ति नियमित रूप से विद्या प्राप्त कर रहा होता है तो उसे विद्यार्थी कहा जाता है। प्राचीन भारत में बालक को गुरुकुल या आश्रम में शिक्षा दी जाती थी। इन स्थानों पर विद्वान तथा ऋषि-मुनि शिक्षक होते थे। उनका कार्य इस तरह समाज की सेवा करना था। उनके अधीन रहकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर युवक पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्या ग्रहण कर गृहस्थ में प्रवेश करता था। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज विद्यार्थी नए ढंग से नए वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।विद्यार्थी का जीवन मनुष्य जीवन की आधारशिला है। उसे आरम्भ में जिस प्रकार की शिक्षा मिलेगी, जिस प्रकार का उसका वातावरण होगा, वह उसी के अनुसार ढलेगा। उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसका विद्यार्थी जीवन आदर्श होना चाहिए। शिक्षाविहीन व्यक्ति पशु के समान है। पशुत्व से मनुष्यता तक पहुंचने के लिए हर उच्च आदर्श उसको प्रदान करना माता-पिता, समाज तथा सरकार का कर्तव्य है। छात्र का जीवन तपस्या का जीवन है। इस जीवन में ही वह शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक गुणों का विकास करता है। जीवन के आरम्भ में यदि वह अनुशासन के नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन अवश्य सुखमय होगा। अत: आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) बनने के लिए उसके अन्दर आज्ञा पालन, अनुशासन एवं सद्बुद्धि अवश्य होनी चाहिए। माता-पिता, गुरुजनों और अपने से बड़े व्यक्तियों का सम्मान करना तथा उनकी आज्ञा के अनुसार चलना अच्छे विद्यार्थी का कर्तव्य है। विद्यार्थी को एकाग्रचित्त होकर विद्या का अध्ययन करना चाहिए। उसे हर स्थान पर संयम से काम करना चाहिए। कक्षा अथवा छात्रावास में,खेल के मैदान में अथवा भोजन के स्थान पर उसके संयम की परीक्षा होती है। उसका जीवन नियमित होना चाहिए। उसे जिज्ञासु होना चाहिए। प्रत्येक नई चीज को सीखने का उसे चाव होना चाहिए।