Hindi, asked by amangupta72144, 23 hours ago

आधुनिक जीवन शैली के कारण निर्मित से जूझने जूझाने की प्रेरणा की प्रेरणा इन त्रिवेणी ओं से मिलती है स्पष्ट कीनि ​

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Answered by XxitzMichAditixX
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गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। उनके जन्म के बारे में एक दोहा प्रचलित है। चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास। उनके पिता रग्घु तथा माता का नाम घुरविनिया था। उनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता है।[3] रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। वे जूते बनाने का काम किया करते थे औऱ ये उनका व्यवसाय था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। [4]संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे।[4] उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से भगा दिया। रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।

hope it helps ♡

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Answered by βαbγGυrl
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