आधुनिक समाज में महिला विकास के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं इसका पता लगाकर एक सूची बनाइए
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आधुनिक समाज में पुरुष आज भी सर्वोपरि है परन्तु हम यह नहीं भूल सकते कि एक महिला का जीवन मनुष्य के जीवन से कहीं अधिक जटिल है। एक महिला को अपनी व्यक्तिगत जिंदगी का ख्याल रखना पड़ता है और यदि वह एक मां है तो उसे अपने बच्चों के पालन पोषण का ख्याल भी रखना पड़ता है। विवाहित स्त्रियाँ अगर नौकरीपेशा हों तो उसके जीवन में अतिरिक्त तनाव हो सकता है, फिर भी वे अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में किसी भी मामले में कमतर नहीं हैं।
वस्तुतः आज भी ऐसे विवाद होतें हैं कि महिलाएं पुरुषों के जितनी मजबूत नहीं हैं और इसलिए हर कार्य उनसे नहीं कराया जा सकता पर क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसे बहुत सारे कार्य हैं जो सिर्फ महिलाएं ही कर सकती हैं, पुरुष नहीं। यह सत्य है कि प्रकृति ने स्त्री और पुरुष को अलग-अलग बनाया है, उनकी शारीरिक क्षमतायें भी भिन्न है लेकिन इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। स्त्री और पुरुष की भूमिकाएं समाज द्वारा बनाये गए मानदंडों या मानकों पर आधारित होती हैं परन्तु ये स्थाई नहीं हो सकती हैं। परिस्थितियों के हिसाब से इनमे समय-समय पर बदलाव होना आवश्यक है। आप ही सोचिये ‘लकीर के फ़कीर’ बने रहने में क्या कोई लाभ है।
शहरी क्षेत्रो में धीरे-धीरे नई विचारधारा के प्रति लोगो में जागरूकता आ रही है लेकिन विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के हालात ख़राब हैं जिसके कारण गरीबी, अनियोजित परिवार, स्वास्थ्य एवं पिछड़ेपन आदि समस्याऐं जस की तस हैं। हमारे ग्रामीण समाज में महिलाओं को बाल श्रमिकों के रूप में अधिक देखा जाता है तथा शिक्षा, बाल विकास, समानता इत्यादि मौलिक अधिकारों से उन्हें वंचित रखा जाता है। किसी भी देश के स्थायी विकास के लिए महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता महत्वपूर्ण है। मेरा मानना है कि अवसर किसी के लिंग के आधार पर नहीं वरन उसकी योग्यता के आधार पर मिलने चाहिए। आप महसूस कर सकते हैं कि हमारी पुरातन मान्यतायें भी प्राकृतिक लिंग मतभेदों पर आधारित नहीं हैं बल्कि रूढ़िवादिता के जहर ने समाज में भेद उत्पन्न कर दिया है।
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