आधुनिक समय में ' भगवद्गीता ' का महत्व विषय पर १००-१५० शब्दों में निबंध लिखिए ।
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गीता भारतीय संस्कृति की आधारशिला है । हिन्दू शास्त्रों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है । गीता में 18 पर्व और 700 श्लोक है । इसके रचयिता वेदव्यास हैं । गीता महाभारत के भीष्म पर्व का ही एक अंग है ।
लोकप्रियता में इससे बढ़कर कोई दूसरा ग्रन्ध नहीं है और इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है । गीता में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से धार्मिक सहिष्णुता की भावना की प्रस्तुत किया गया है जो भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है ।
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के मध्य युद्ध में अर्जुन अपने स्वजनों को देखकर युद्ध से विमुख होने लगा । धर्मयुद्ध के अवसर पर शोकमग्न अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि व्यक्ति को निष्काम भाव से कर्म करते हुए फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भू: मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि ।।
आत्मा की नित्यता बताते हुए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यह आत्मा अजर-अमर है । शरीर के नष्ट होने पर भी यह आत्मा मरती नहीं है । जिस प्रकार व्यक्ति पुराना वस्त्र उतार कर नया वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर छोड़कर नया शरीर धारण कर लेती है ।
आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न वायु उड़ा सकती है और न जल ही गीला कर सकता है । आत्मा को जो मारता है और जो इसे मरा हुआ समझता है, वह दोनों यह नहीं जानते कि न यह मरती है और न ही मारी जाती है । हे अर्जुन ! युद्ध में विजयी हुए तो श्री और युद्ध न करने पर अपयश मिलेगा इसलिए युद्ध कर ।
गीतानुसार हमें साधारण जीवन के व्यवहार सेघृणा नहीं करनी चाहिए अपितु स्वार्थमय इच्छाओं का दमन करना चाहिए । अहंकार को नष्ट करना चाहिए । अहंकार के रहते हुए ज्ञान का उदय नहीं होता, गुरु की कृपा नहीं होती और ज्ञान ग्रहण करने क्षमना नहीं होनी ।
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Explanation:
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता में केवल उपदेश ही नहीं, उसमें शामिल किए गए अध्याय मनुष्य को सही फैसला लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इन सभी अध्यायों में से प्रसिद्ध अध्याय है श्रीकृष्ण तथा राजकुमार अर्जुन के बीच युद्ध शुरू होने से पहले हुआ वार्तालाप।
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टैलेपैथी
यह अध्याय हमें आधुनिक युग की ‘टैलीपैथी’ तथा ‘टाइमलेसनेस’ तकनीक को समझाता है। जब दुनिया तकनीक से पूर्ण रूप से वंचित थी उस समय इसका इस्तेमाल किया गया, यह बेहद हैरान करने वाले तथ्य हैं।
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कुरुक्षेत्र युद्ध
यह तब की बात है जब कुरुक्षेत्र युद्ध आरंभ हो चुका था। युद्ध का बिगुल बज चुका था, दोनों पक्ष एक-दूसरे के सामने खड़े थे कि तभी अर्जुन ने अपना धनुष उठाया। बेहद उत्साह के साथ यह महान योद्धा युद्ध के मैदान में उतरने के लिए पूर्ण रूप से तैयार था, लेकिन इसके बाद उसे क्या हुआ कोई समझ ना पाया।
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राजकुमार अर्जुन
राजकुमार अर्जुन के हाथ कंपकंपा रहे थे। उनकी अंगुलियों ने मानो काम ना करने का जवाब दे दिया था। यह महान योद्धा अपना हथियार त्याग एक कोने में बैठ गया। युद्ध भूमि में ऐसे योद्धा को कायरों की तरह बैठा देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन से मन से मन के द्वारा ही बात की।