आधुनिकता के साथ-साथ परंपरा को भी लेकर चलना चाहिए। कैसे?
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आधुनिकता की समझ के लिए परंपरा का ज्ञान होना उतना ही जरूरी है, जितना किसी प्यासे व्यक्ति के लिए पानी। जबकि ‘परंपरा का सिर्फ ज्ञान रखना परंपरावादी होना नहीं है’ तो आधुनिकता की संपूर्णता को परंपरा से अलग रख कर देखना कहां तक संभव है! कोई प्रक्रिया कड़े और लगातार प्रयोगों से गुजरने के बाद परंपरा का रूप ले पाती है तो वह संगत परिवर्तन की गुंजाइश भी साथ लेकर चलती है। समय सापेक्ष उसके मूल्यांकन के अभाव में अगर कोई परंपरा जड़ हो जाए तो वह अपने किसी भी रूप में परंपरा नहीं रहती, प्रथा या रूढ़ि बन जाती है।
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