Hindi, asked by Anonymous, 5 hours ago

आवश्यकता के अनुरूप प्रत्येक जीव को कार्य करना पड़ता है। कर्म से कोई मुक्त नहीं है। अत्यंत उच्चस्तरीय आध्यात्मिक जीव जो साधना में लीन है अथवा उसके विपरीत वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति ही कर्महीन रह सकता है। शरीर ऊर्जा का केंद्र है। प्रकृति से ऊर्जा प्राप्त करने की इच्छा और अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मानव के सभी कार्यव्यवहारों को नियंत्रित करता है। अतः आध्यात्मिक साधना में लीन और वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति भी किसी न किसी स्तर पर कर्मलीन रहते ही हैं।

गीता में कृष्ण कहते हैं, ‘यदि तुम स्वेच्छा से कर्म नहीं करोगे तो प्रकृति तुमसे बलात् कर्म कराएगी।’ जीव मात्र के कल्याण की भावना से पोषित कर्म पूज्य हो जाता है। इस दृष्टि से जो राजनीति के माध्यम से मानवता की सेवा करना चाहते हैं उन्हें उपेक्षित नहीं किया जा सकता। यदि वे उचित भावना से कार्य करें तो वे अपने कार्यों को आध्यात्मिक स्तर तक उठा सकते हैं।

यह समय की पुकार है। जो राजनीति में प्रवेश पाना चाहते हैं, वे यह कार्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण लेकर करें और दिनप्रतिदिन आत्मविश्लेषण, अंतर्दृष्टि, सतर्कता और सावधानी के साथ अपने आप का परीक्षण करें, जिसमें वे सन्मार्ग से भटक न ‘जाएँ। राजेंद्र प्रसाद के अनुसार “सेवक के लिए हमेशा जगह खाली पड़ी रहती है। उम्मीदवारों की भीड़ सेवा के लिए नहीं हआ करती। भीड तो सेवा के फल के बँटवारे के लिए लगा करती है जिसका ध्येय केवल सेवा है, सेवा का फल नहीं, उसको इस धक्का-मुक्की में जाने की और इस होड़ में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।

1. कर्म से मुक्ति संभव क्यों नहीं है?
2. सच्चे सेवक की पहचान क्या है ?
3. साधना में लीन एवं वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति को कर्मरत क्यों बताया गया है?
4. कर्म करते हुए व्यक्ति खुद को आध्यात्मिक स्तर तक कैसे उठा सकता है?
5. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सेवक और उम्मीदवार के कर्म को किस तरह अलग-अलग रूपों में देखते हैं ?

Answers

Answered by BrainlyUnnati
9

ANswer :

(क) कर्म से मुक्ति संभव क्यों नहीं है?

कर्म से मुक्ति इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि कर्म ही ऊर्जा का साधन है और प्रकृति के लिए ऊर्जा आवश्यक है।

(ख) सच्चे सेवक की पहचान क्या है ?

सच्चे सेवक की पहचान यह है कि वह हमेशा खाली पड़ी जगह को भर देता है।

(ग) साधना में लीन एवं वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति को कर्मरत क्यों बताया गया है?

मानव शरीर ऊर्जा का केंद्र है, प्रकृति से ऊर्जा पाने की इच्छा अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मनुष्य के कार्य व्यवहारों को नियंत्रित करता है तथा कर्म के लिए प्रेरित करता रहता है। अतः ऐसे व्यक्ति भी किसी न किसी रूप में कर्मरत रहते हैं।

(घ) कर्म करते हुए व्यक्ति खुद को आध्यात्मिक स्तर तक कैसे उठा सकता है?

कल्याण की भावना से किया गया कर्म पूज्य हो जाता है। कल्याण की भावना से मानवता की सेवा यदि व्यक्ति करता है तो वह खुद को आध्यात्मिक स्तर तक उठा सकता है।

(ङ) डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सेवक और उम्मीदवार के कर्म को किस तरह अलग-अलग रूपों में देखते हैं ?

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अनुसार सेवक के मन में सेवा भावना प्रबल होती है। वह निस्स्वार्थ भाव से सेवा के लिए तैयार रहता है, इसके विपरीत उम्मीदवार सेवा के लिए न होकर सेवा के फल के बँटवारे के लिए होते हैं। इस तरह वे सेवक और उम्मीदवार के कर्म में अंतर देखते हैं।

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Answered by PalakSachwani
3

Answer:

(क)  कर्म से मुक्ति इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि कर्म ही ऊर्जा का साधन है और प्रकृति के लिए ऊर्जा आवश्यक है।

(ख) सच्चे सेवक की पहचान यह है कि वह हमेशा खाली पड़ी जगह को भर देता है।

(ग) मानव शरीर ऊर्जा का केंद्र है, प्रकृति से ऊर्जा पाने की इच्छा अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मनुष्य के कार्य व्यवहारों को नियंत्रित करता है तथा कर्म के लिए प्रेरित करता रहता है। अतः ऐसे व्यक्ति भी किसी न किसी रूप में कर्मरत रहते हैं।

(घ)  कल्याण की भावना से किया गया कर्म पूज्य हो जाता है। कल्याण की भावना से मानवता की सेवा यदि व्यक्ति करता है तो वह खुद को आध्यात्मिक स्तर तक उठा सकता है।

(ङ) डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अनुसार सेवक के मन में सेवा भावना प्रबल होती है। वह निस्स्वार्थ भाव से सेवा के लिए तैयार रहता है, इसके विपरीत उम्मीदवार सेवा के लिए न होकर सेवा के फल के बँटवारे के लिए होते हैं। इस तरह वे सेवक और उम्मीदवार के कर्म में अंतर देखते हैं।

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