Hindi, asked by nishadjanki83, 4 months ago

आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम काव्य सौन्दयॅ​

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Answered by shishir303
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आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम काव्य सौन्दर्य

✎... इन पंक्तियों काव्य सौंदर्य यह है कि इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपने मन की आक्रोश प्रकट किया है। यह पंक्तियां कवि कुंभनदास द्वारा रचित कविता की पंक्तियां हैं। कवि कुंभनदास बृज भाषा के एक भक्त कवि थे, जो अकबर के कालसमय के कवि थे। जो मोह-माया, राज-दरबार, राज सम्मान आदि से दूर रहते थे। अकबर के बुलावे पर बेमन से उन्हे उसके दरबार फतेहपुर सीकरी में जाना पड़ा और उस दरबार में उन्होने ये पंक्तियां कहीं। जिसमें उन्होंने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि एक ईश्वर की भक्ति में लीन रहने वाले कवि को राज दरबार से क्या काम।

कवि द्वार इन पंक्तियों में रौद्र रस प्रकट हो रहा है, क्योंकि वो इन पंक्तियों के माध्यम से अपना व्यंग्यात्मक क्रोध प्रकट कर रहे हैं। रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है।

पंक्तियों में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।

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Answered by rd636675
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Answer:

कवि कहते हैं कि मैं जहाँ पर था वहाँ से फतेहपुर सीकरी आने में मेरा पैर का तलाक घिस गया है

इसी बीच में भगवान विष्णु का नाम लेना ही भूल गया

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