Hindi, asked by herkshendraveerdwiv, 7 months ago

आये ॥

बहुत दिनन थें मैं प्रीतम पाये,
भाग बड़े घरि बैठे
मंगलचार माँहिं मन राखौं, राम रसाइण रसना चाषौं
मंदिर माँहिं भया उजियारा, ले सूती अपनाँ पीव पियारा॥
मैं रनिरासी जे निधि पाई, हमहिं कहा यहु तुमहिं बड़ाई।
कहै कबीर मैं कछू न कीन्हाँ, सखी सुहाग राम मोहिं दीन्हाँ ॥ 1 ॥
is is sandarv ki vyakhya kijiye​

Answers

Answered by Harshitm077
5

Answer:

कबीरदास जी कहते हैं की मेरी आत्मा रूपी प्रेमिका को बोहोत दिनो के बाद अपने प्रियतम पार्थत परमात्मा से मिलने का अवसर मिला है | यह मेरे परम सौभाग्य की बात है की आज वह प्रियतम बिना किसी प्रयास के ही मिल गया है क्योंकि वह स्वयं मेरे घर अर्थात् मेरे पास आया है। आत्मा व परमात्मा के इस महामिलन के अवसर पर मेरा मन मंगलाचार कर रहा हे और मेरी जीभ राम रूपी रसायन के स्वाद को चख रही है। कहने का तात्पर्य यह कि आत्मा व परमत्मा के मिलन के अवसर पर भक्त के ह्रदय में असीम आनन्द है और वह बार-बार उस परमात्मा के नाम का ही स्मरण कर रहा है। कबीर दास जी कहते है कि अब मेरे मन रूपी मंदिर में ज्ञान वा प्रेम के प्रकाश से उजाला हो गया है और मेरी सतिरूपी आत्मा अपने प्यारे प्रियतम के साथ मिलन के सुख का आनंद उठ रही है। कबीर दास जी कहते है कि परमत्मा के मिलन से जो निधिया अर्थात् सुख मुझे मिले है , उनकी में तुमसे कहां तक प्रसंसा कर अर्थात उं सुखी का वर्णन नहीं किया जा सकता । कबीर दास जी कहते है कि परमत्मा के साथ होने वाले इज मिलन मै मेरे कोई योग नहीं है। यह तो मेरे प्रियतम राम ने अनुकम्पा करके मुझे इस महामिलान के अवसर को प्रदान किया है।

Explanation:

Kabir Das ji says that my soul mate has got an opportunity to meet her beloved god after a long time. It is a matter of my utmost good fortune that today that my beloved lord has been found without any effort because he has came to my home all by himself i.e. to me. On the occasion of this grand meeting of the soul & Supreme Soul, my mind is chanting and my tongue is tasting the taste of the chemistry of Rama.

It means to say that on the occasion of the union of the soul and the Supreme Soul, there is immense joy in the heart of the devotee and he is repeatedly remembering the name of that God. Kabir Das ji says that now the temple of my mind has become lit with the light of knowledge and love and my soul in the form of satiety and is enjoying the pleasure of union with its beloved god. Kabir Das ji also says that I have no yog in this union with God. It is because my dearest Ram has compassionately bestowed upon me on the occasion of this great union.

Answered by aradhya28tm
0

Answer:

कवीरदास जी कहते हैं कि मेरी आत्मा को बहुत बाद परमात्मा से मिलने का अवसर मिला है। बड़े सौभाग्य की बात है कि घर बैठे प्रभु के दर्शन हुए। इस मिलन के अवसर दिनों पर मेरा मन मंगलचार कर रहा है, मेरी जीभ राम रस की मिठास को चख रही है। मेरे शरीर रूपी मन्दिर में प्रकाश उत्पन्न हुआ है, आत्मा प्रियतम के मिलने का सुख उठा रही है। मैनें रानी बनकर जो निधि पाई मैने वाँणी से उसका वर्णन नहीं कर सकती। कबीर दास जी कहते हैं कि मैंनें कुछ नहीं किया है यह सौभाग्य तो मुझे परमात्मा ने ही प्रदान किया है।

Similar questions