आयुनिकता ने मनुष्य को वन-लोलुप बना दिया है। वह दिन-रात धन के पीछे भागता जा रहा है। दस से सौ, सैसे पांच सौ
और पाँच सौ से हजार के पीछे भागते-भागते मनुष्य अपने पारिवारिक संबंधों से टूटकर स्वार्थ के अंधकार से घिरता जा रहा है। अपनी
स्वार्थपूर्ति हेतु मनुष्य आज सत्य-असत्य, उचित-अनुचित का ज्ञान खो बैठा है। धन की लालसा ने ही समाज में चोरी-डकैती,हत्या आदि
अपराधों को बढावा दिया है। आज भाई-माई का दुश्मन बन गया है। वृदध माता-पिता को अकेले छोड युवा पीढी अपने में ही मग्न रहने
लगी है। असतोष की भावना में, सब कुछ पा लेने की चाह ने, व्यक्ति को आत्म केन्द्रित कर दिया है please tell me moral
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