Hindi, asked by Asmitaajaybaravkar, 2 months ago

आज़ादी और गुलामी इस विषय पर निबंध लिखिए​

Answers

Answered by student559
6

Explanation:

हमारा देश अंग्रेजों की राजनीतिक दासता से तो मुक्त हो गया पर जीवनशैली, भाषा, रहन सहन तथा वैचारिक शैली की दृष्टि से हमारा पूरा समाज आज भी उनका गुलाम है। स्थिति यह है कि हिन्दी भाषा का उपभोक्ता बाज़ार इतना बड़ा हो गया है पर उसका आर्थिक दोहन वह लोग कर रहे हैं जो अंग्रेजी के गुलाम है। स्थिति यह है अंग्रेजी भाषा तथा जीवनशैली अपनाने वालों को हमारे यहं सभ्रांत माना जाता है। इतना ही नहीं हिन्दी धारावाहिकों, फिल्मो तथा साहित्य में प्रसिद्धि पाये अनेक लोगों को अपने टीवी साक्षात्कारों में अंग्रेजी भाषा बोलते देखना पड़ता है। अंग्रेजी भाषा तथा जीवनशैली का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। पहनावे के लिये पश्चिमी परिधानों को अपनाया जा रहा है तो खानपान में भी यही फास्ट फूड जैसे पदार्थों का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि समाज अपने सांस्कारिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक कार्यक्रमों में अंग्रेजी प्रक्रिया का पालन करने की प्रवृत्ति को सहजता से मान्यता दी है। यह सब तो चल सकता है पर मुख्य विषय यह है कि हमारे यहां अब लोग अपने छोटे व्यवसायों से अलग होकर नौकरी यानि गुलामी पर आश्रित हो रहे हैं। जो आदमी योग्यता की दृष्टि से निम्न या मध्यम स्तर का है वह देश में तो जो उच्च है वह विदेश में नौकरी की प्रतीक्षा कर रहा है। एक तरह से देश का जनमानस ही परतंत्रता के भाव में सांस ले रहा है। स्वतंत्र चिंत्तन, कर्म, विचार तथा अभिव्यक्ति का मतलब ही लोग नहीं समझ पा रहे।

Answered by mittalsapna19
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Explanation:

हमारा देश अंग्रेजों की राजनीतिक दासता से तो मुक्त हो गया पर जीवनशैली, भाषा, रहन सहन तथा वैचारिक शैली की दृष्टि से हमारा पूरा समाज आज भी उनका गुलाम है। स्थिति यह है कि हिन्दी भाषा का उपभोक्ता बाज़ार इतना बड़ा हो गया है पर उसका आर्थिक दोहन वह लोग कर रहे हैं जो अंग्रेजी के गुलाम है। स्थिति यह है अंग्रेजी भाषा तथा जीवनशैली अपनाने वालों को हमारे यहं सभ्रांत माना जाता है। इतना ही नहीं हिन्दी धारावाहिकों, फिल्मो तथा साहित्य में प्रसिद्धि पाये अनेक लोगों को अपने टीवी साक्षात्कारों में अंग्रेजी भाषा बोलते देखना पड़ता है। अंग्रेजी भाषा तथा जीवनशैली का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। पहनावे के लिये पश्चिमी परिधानों को अपनाया जा रहा है तो खानपान में भी यही फास्ट फूड जैसे पदार्थों का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि समाज अपने सांस्कारिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक कार्यक्रमों में अंग्रेजी प्रक्रिया का पालन करने की प्रवृत्ति को सहजता से मान्यता दी है। यह सब तो चल सकता है पर मुख्य विषय यह है कि हमारे यहां अब लोग अपने छोटे व्यवसायों से अलग होकर नौकरी यानि गुलामी पर आश्रित हो रहे हैं। जो आदमी योग्यता की दृष्टि से निम्न या मध्यम स्तर का है वह देश में तो जो उच्च है वह विदेश में नौकरी की प्रतीक्षा कर रहा है। एक तरह से देश का जनमानस ही परतंत्रता के भाव में सांस ले रहा है। स्वतंत्र चिंत्तन, कर्म, विचार तथा अभिव्यक्ति का मतलब ही लोग नहीं समझ पा रहे।

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