अब आपसे क्या कहें, लब्जा और शर्म के कैसे-कैसे खयाल हमारे मन में उठे। सोचा, क्या हम ही ज़माने भर में
फिसड्डी रह गए हैं? सारी दुनिया चलाती है, जरा-जरा से लड़के चलाते हैं, मूर्ख और गवार चलाते हैं, हम तो
परमात्मा की कृपा से पढ़े-लिखे हैं।
(क) लेखक को लज्जा क्यों आ रही थी?
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