अब गहरी
नीम सो सकोगे
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ।
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने दूंगा.
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा है।
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूंगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।
Pos
सुख नहीं यह, नीद में सपने संजोना,
दुख नहीं यह, शीश पर गुरु भार ढोना।
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल मैं उसको बनाने आ रहा है।
देखकर मझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना।
मैं किनारे पर तुम्हें थकने न दूँगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ।
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