Hindi, asked by AmitendraSingh, 6 months ago

अबिगत-गति कछु कहत न आवै।
ज्यौं गूंगे मीठे फल को रस, अंतरगत ही भावै।
परम स्वाद सबही सु निरंतर, अमित तोष उपजावै।
मन-बानी को अगम-अगोचर, सो जानै जो पावै।
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु, निरालंब कित धावै।
सब विधि अगम विचारहिं
अगम विचारहिं तातै, सूर सगुन-पद गावै।।
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिम्ब पकरिबै धावत।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौ, करि सौं पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।
कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति।
करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति।।​

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Answered by dashpriyanshuranjan
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Answer:

this is the explaination on the above image.

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