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Explanation:
नाश के बारे भविष्यद्वाणी करने के बाद, प्रेरित पतरस कहता है: “तो जब कि ये सब वस्तुएँ, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिए कैसा यत्न करना चाहिए।” (२ पतरस ३:११, १२) हमें अपने व्यक्तित्व को अपनी उस तीव्र इच्छा से ढालना चाहिए, कि जब दुष्ट लोगों का नाश होगा, तब हम उन ईमानदार लोगों में होंगे जो बचे रहेंगे।
१६. नयी दुनिया में किस तरह के व्यक्तित्वों के लिए कोई जगह नहीं होगी, और इस ज्ञान से हम पर कैसा असर होना चाहिए?
१६ प्रकाशितवाक्य की किताब में ईमानदार लोगों को यह वचन दिया गया है कि, इस दुनिया के ख़त्म होने के बाद, “[परमेश्वर] उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” लेकिन फिर यह चेतावनी दी गयी है कि “डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों” को ठुकरा दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य २१:४, ८) उन अवांछनीय गुणों से बचे रहना कितनी बुद्धिमत्ता की बात है, जिसकी अनुमति परमेश्वर नयी दुनिया में नहीं देंगे!
बाहर से सहायता
१७. बाइबल हमें किस तरह की सहायता खोजने की सलाह देती है?
१७ फिर भी, मानव कमज़ोर हैं, और अगर उन्हें परिवर्तन करने हैं, तो आम तौर से उन्हें जानकारी और प्रेरणा के अलावा किसी और बात की ज़रूरत होती है। उन्हें वैयक्तिक सहायता की ज़रूरत है, और बाइबल हमें दिखाती है कि हम यह सहायता कहाँ पा सकते हैं। मिसाल के तौर पर, यह कहती है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों से व्यवहार करनेवाले बुरी तरह विफल होंगे।” (नीतिवचन १३:२०, न्यू.व.) उसी तरह, अगर हम ऐसे लोगों से संगति करेंगे जो वे गुण प्रकट करते हैं, जो हम विकसित करना चाहते हैं, तो इस से हमारी अत्याधिक मात्रा में उनके जैसे बनने में बड़ी सहायता होगी।—उत्पत्ति ६:९; नीतिवचन २:२०; १ कुरिन्थियों १५:३३.
१८, १९. हमें अपने मन और हृदय को परमेश्वर की आत्मा के प्रभाव में डालने
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