अब हुआ सान्ध्य-स्वर्णाभ लीन, सब वर्ण वस्तु से विश्व हीन गंगा के चल-जल में निर्मल, कुम्हला किरणों का रक्कोपल
हे मूँद चुका अपने मृदु-दल।
लहरों पर स्वर्ण-रेख-सुन्दर, पड़ गई नील, ज्यों अधरों पर अरुणाई प्रखर शशि से डर ॥
तरु शिखरों से वह स्वर्ण विहग, उड़ गया, खोल निज पंख सुमन
Answers
Answered by
0
Answer:
uenisnejsjsn
Explanation:
jsjnsiznsvxmsmeushvsjanscea
Similar questions