अब हाथ मत अपने मलो,
जलना, अगर ऐसे जलो,
अपने हृदय की भस्म से,
कर दो धरा को उर्वरा।
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अपने हृदय की भस्म से, कर दो धरा को उर्वरा, मानव बनो, मानव ज़रा।17-Nov-2020
अब हाथ मत अपने मलो,
जलना, अगर ऐसे जलो,
अपने हृदय की भस्म से,
कर दो धरा को उर्वरा।
अर्थ : शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित मानव बनो कविता की इन पंक्तियों के भावार्थ के अनुसार कवि यह कहना चाहता है कि हमें कोई भी कार्य करके उस कार्य के असफल होने पर अपनी भूल पर कभी भी पछताना नहीं चाहिए। ना ही हमें किसी के प्रति जलन यानि ईर्ष्या का भाव रखना चाहिए। यदि हमें जलना ही है तो हमें धूप की तरह जलना चाहिए जिससे हमारे जलने से जो भस्म बने वह इस पृथ्वी को उपजाऊ बना दे।
अर्थात यदि हमें जलना ही है तो हमें इस तरह जलना चाहिए जो त्यागमयी हो और इस तरह त्याग करना चाहिए कि उससे किसी ना किसी का कल्याण हो। हमें स्वयं को जलकर समाज को कुछ सार्थक देना चाहिए। यहाँ पर जलने से तात्पर्य अपने अंदर की मोह माया अहंकार बुराइयों को जला देने से है तथा अपने किसी अच्छे उद्देश्य के लिए अपने जीवन अपने सुखों को त्याग कर देने से है।
#SPJ2
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