Hindi, asked by pratham4500, 5 months ago

'अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही'-रस का नाम लिखिए |​

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Answered by mgpsanushka8965
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Answer:उपरोक्त पद में महाकवि सूरदास गोपियों के मन व्यथा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि हमारे मन में विचारों की उथल पुथल मची हुई है ,वो एक ही बात को पुनः पुनः विचार करती है।हे उधव यह मन की बातें किससे कहूँ अपने मन की बात किसी से नहीं कही जाती ।कृष्ण के आने कीआशा में हमनें यह तन और मन की व्यथा सहन की थी।अब तुम्हारे मुख से यह योगसंदेश सुन सुन कर हमारी विरह व्यथा बढती जा रही है ।अब हम अपने आँसूओं के सैलाब को नहीं रोक पा रही हैं। गोपियाँ कहती है कि अब हम अधिक धैर्य धारण नहीं कर सकती हैं ।

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