अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। आदत
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
तुम
मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
प्रभु जी, in english
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रैदास के पद भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रैदास जी ने अपने भक्ति भाव का वर्णन किया है। उनके अनुसार, जिस तरह प्रकृति में बहुत सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं, ठीक उसी तरह, भक्त एवं भगवान भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने प्रथम पंक्ति में ही राम नाम का गुणगान किया है। रैदास के पद की इन पंक्तियों में वे बोल रहे हैं कि अगर एक बार राम नाम रटने की लत लग जाए, तो फिर वह कभी छूट नहीं सकती। उनके अनुसार, भक्त एवं भगवान चन्दन की लकड़ी एवं पानी की तरह होते हैं।
जब चन्दन की लकड़ी को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता है, तो उसकी सुगंध पानी में फ़ैल जाती है। ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपनी सुगंध भक्त के मन में छोड़ जाते हैं। जिसे सूंघकर भक्त सदा प्रभु-भक्ति में लीन रहता है।
आगे वह कहते हैं कि जब वर्षा होने वाली होती है और चारों तरफ़ आकाश में बादल घिर जाते हैं, तो जंगल में उपस्थित मोर अपने पंख फैलाकर नाचे बिना नहीं रह सकता। ठीक उसी प्रकार, एक भक्त राम नाम लिये बिना नहीं रह सकता। रैदास जी आगे कहते हैं, जैसे दीपक में बाती जलती रहती है, वैसे ही, एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर सदा प्रज्वलित होता रहता है।
कवि के अनुसार अगर ईश्वर मोती हैं, तो भक्त एक धागे के सामान है, जिसमें मोतियों को पिरोया जाता है अर्थात दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं और इसीलिए कवि ने एक भक्त से भगवान के मिलन को सोने पे सुहागा कहा है। रैदास के पद की इन पंक्तियों में अपनी भक्ति का वर्णन करते हुए ,रैदास जी स्वयं को एक दास और प्रभु को स्वामी कहते हैं