अब कहा दुसरो के दुख मे दुखी होनेवाले पाठ के अनुसार वनस्पति और जीवन जगत के बारे मे लेखक कि मा के क्या विचार थे ?
Answers
Explanation:
प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया।
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इसका अन्जाम यह हुआ कि दूसरे जीवधारियों की या तो नस्ल ही ख़त्म हो गई या उन्हें अपने ठिकानों से कहीं दूसरी जगह जाना पड़ा जहाँ आदमी ना पहुँचा हो। कुछ जीवधारी तो आज भी अपने लिए ठिकानों की तलाश कर रहे हैं।
अगर इतना ही हुआ होता तो भी संतोष किया जा सकता था लेकिन आदमी नाम का यह जीव सब कुछ समेटना चाहता था और उसकी यह भूख इतना सब कुछ करने के बाद भी शांत नहीं हुई। अब वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा। यदि आपको भरोसा नहीं है तो इस पाठ को पढ़ लीजिए और पाठ को पढ़ते हुए अपने आस पास के लोगों को याद भी कीजिए और ऐसा जरूर होगा कि आपको कोई न कोई ऐसे व्यक्ति याद आयेंगे जिन्होंने किसी न किसी के साथ ऐसा बर्ताव किया होगा।
Answer:
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लेखक की मां के विचार है कि सूरज छिपने के बाद पर्थ से फूल पत्ते नहीं तोड़ते क्योंकि पैर रोते हैं बीए बत्ती के वक्त फूलों को तोड़ने पर वह बद्दुआ देते हैं।दरिया पर जाकर उसे सलाम करो कबूतरों को इसलिए नहीं सताना चाहिए क्योंकि वह हजरत मुहम्मद के अजीज है। मुर्गो को परेशान इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वह रोज सवेरे उठकर बांग देता है और हम सबको प्रातः जमाने का काम करता है।
ऊपर आपका उत्तर दिया गया है आशा करता हूं आपको समझ जाए और आपका हल मिल जाए धन्यवाद।