अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
रामकृपा भव-निसा सिरानी, जागे पुनि न डसैहौं।
पायो नाम चारू चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इन्द्रिन निज बस है न हँसैहौं।
मन मधुकर पन कर तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ॥ 2 ॥
Answers
संदर्भ = यह पद तुलसीदास द्वारा रचित विनय पत्रिका से लिये गये है। इन पदों के माध्यम से तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम से के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुये मोह-माया के बंधन से स्वयं को मुक्त हो जाने का संकेत दिया है।
भावार्थ = तुलसीदास जी कहते हैं कि अभी तक तो मेरी आयु व्यर्थ ही निकल गई। अब मैं अपनी आगे की आयु को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। प्रभु श्री राम की कृपा से यह संसार रूपी अंधकार रात्रि बीत गई है और मैं इस माया रात्रि के स्वप्न से जग गया हूं। अब इस माया रुपी रात्रि में मोहरूपी बिछौने को नही बिछाऊंगा। अर्थात मैं अब मोह-माया के फंदे में नहीं फसूंगा। पहले मैं विषय वासनाओं के चक्कर था अब मैं विषय वासनाओं के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। यह विषय वासना ही मुझे पतन के मार्ग की ओर ले जा रहे थे। मुझे अब राम नाम की चिंतामणि मिल गई है। अब मैं इस अनमोल मणि को अपने हृदय रूपी हाथ से कभी गिरने नहीं दूंगा।
तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु का यह श्याम रूप एक सुंदर कसौटी की तरह है और मैं इस श्याम रूप से अपने चित्त को परखूंगा, मैं अपने मन की परीक्षा करूंगा और यह जानने का प्रयत्न करूंगा कि मेरा मन प्रभु के चिंतन करने के कितना योग्य है। पहले मैं इंद्रियों के वश में था, तब इंद्रियां मेरा उपहास उड़ाती थीं, लेकिन अब मैने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है। अब मैं इंद्रियों को अपनी हंसी नहीं उड़ाने दूंगा अर्थात पहले मैं विषय वासनाओं के चक्कर में पड़ा रहता था लेकिन अब मैंने विषय वासनाओं पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है। अब मैं अब मेरा मन सिर्फ श्रीराम के चरण कमलों में ही लगेगा।