Hindi, asked by piyushbagde04, 9 months ago

" अब लौं नसनी, अब न नसैहौं । राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागे पुनि न डसैहौं ।। पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं । स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं ।। परबस जानि हंस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हंसैहौं । मन मधुकर पन कर तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ।।" is pankti ka bhaav saundarya aur kavya saundarya aur bataiye​

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Answered by deepaliguptab1
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अब लौं नसानी, अब न नसैहों।

रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥

पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।

स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥

परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं।

मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी रघुपति पदकमल बसैहौं॥। तुलसीदास  जी (विनय पत्रिका)

                                                   

भावार्थ- जीवन नष्ट होता जा रहा है  |  एक एक सांस के साथ प्रयाणकाल नजदीक आता जा रहा है | जानता हूँ कि मानव योनि के अलावा जितनी भी योनियाँ है, वह सब भोग योनियाँ है| केवल मानव योनि ही एक ऐसी योनि है

  • मुझे रामरूपी चिंता मणि मिल गयी है उसे हृदयरूपी हाथ से कभी नहीं गिरने दूंगा |      
  • अथवा ह्रदय से राम नाम का स्मरण करता रहूँगा और हाथ  से राम नाम की माला जपा करूँगा |  

    जिसमे जीव अपना कल्याण कर सकता है और आवागमन से मुक्त हो सकता है  

  • अब तक का जीवन बर्बाद किया। आगे न करूंगा। आप की कृपा की कसौटी पर अपने चित्त को कसूंगा
  • जब तक मै इन्द्रियों के वश में था तब तक इन्द्रियों ने मेरी हंसी उड़ाई, परन्तु अब स्वतंत्र होने पर इन्द्रियों से अपनी हंसी नहीं कराऊंगा |
  • अब तो अपने मनरूपी भ्रमण को प्रण करके श्री राम के चरण छोड़कर अपने मन को दूसरी जगह नहीं जाने दूंगा |

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Q.1.- Tulsidas ji ki rachnaye in hindi​

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Q.2.- Tulsidas ji ki bhaktibhavna kaisi thi

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Answered by singhvinod5543
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Answer:

ramkripa bhav nisa sirani

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