Hindi, asked by aminansari9308093080, 10 months ago

अब्दुल्ला के अंधे हो जाने पर फ़कीर ने क्या किया?​

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Answered by ektasharma981130
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Answer:

बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सारा धन शीघ्र उड़ा दिया। फिर मैंने जी तोड़ कर धनार्जन किया और उससे अस्सी ऊँट खरीदे। मैं उन ऊँटों को किराए पर व्यापारियों को दिया करता था। उनके किराए से मुझे काफी लाभ हुआ और मैंने कुछ और ऊँट खरीदे और उनको साथ में ले कर किराए पर माल ढोने लगा।

एक बार हिंदुस्तान जानेवाले व्यापारियों का माल ऊँटों पर लाद कर मैं बसरा ले गया। वहाँ माल को जहाजों पर लगा। रास्ते में एक बड़ा हरा-भरा मैदान देख कर मैंने ऊँटों के पाँव बाँध कर उन्हें चरने छोड़ दिया और खुद आराम करने लगा। इतने में बसरा से बगदाद को जानेवाला एक फकीर भी मेरे पास आ बैठा। मैंने भोजन निकाला और उसे साथ में आने को कहा। खाते-खाते हम लोग बातें भी करते जाते थे। उसने कहा, तुम रात-दिन बेकार मेहनत करते हो। यहाँ से कुछ दूर पर एक ऐसी जगह है जहाँ असंख्य द्रव भरा है। तुम इन अस्सी ऊँटों को रत्नों और अशर्फियों से लाद सकते हो। और वह धन तुम्हारे जीवन भर को काफी होगा।

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मैंने यह सुन कर उसे गले लगाया और यह न जाना कि वह इससे कुछ स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। मैंने उससे कहा, तुम तो महात्मा हो, तुम्हें सांसारिक धन से क्या लेना-देना। तुम मुझे वह जगह दिखाओ तो मैं ऊँटों को रत्नादि से लाद लूँ। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें उनमें से एक ऊँट दे दूँगा। मैंने कहने को तो कह दिया किंतु मेरे मन में द्वंद्व होने लगा। कभी सोचता कि बेकार ही एक ऊँट इसे देने को कहा, कभी सोचता कि क्या हुआ, मेरे लिए उन्यासी ऊँट ही बहुत हैं। वह फकीर मेरे मन के द्वंद्व को समझ

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