अभिमन्यु की मृत्यु से आहत होकर अर्जुन ने क्या प्रतिज्ञा की?
कर्ण की दानवीरता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
बलराम ने अपना शरीर क्यों त्याग दिया?
सूर्य से प्राप्त अक्षयपात्र की क्या विशेषता थी?
पाण्डव अपने अज्ञातवास के दौरान कहां तथा किन - किन नामों से रहे?
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अभिमन्यु की मृत्यु से आहत होकर अर्जुन ने क्या प्रतिज्ञा किया की यदि अगले दिन सूर्यास्त से पहले उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा।
कर्ण के दानवीरता के किस्से पुरे विश्व में एक मिसाल हैं, जिसने अपने जान की परवाह ना करते हुए कुंती (उनकी माँ) के कहने पर अपना जान युद्ध में न्योछावर कर दिया। कर्ण की दानवीरता और मित्रता को देखते हुए यह समझ में आता है कि दान करने से पहले अपने हित के बारे में नहीं सोचना चाहिए। और सर्व हित सुखाय की भाव से जीवनयापन करना चाहिए।
विष्णु पुराण के अनुसार यादवों के बीच हो रहे आपसी संघर्ष से निराश होकर बलराम जी सागर तट पर ध्यान लगाकर बैठ गए।श्री कृष्ण जी ने देखा कि बलराम जी के मुख से एक विशाल नाग निकल रहा है। उस विशाल नाग की पूजा में ऋषि मुनि और नाग लोक के नाग कर रहे हैं। वह नाग सागर में प्रवेश कर गया और बलराम जी ने शरीर त्याग दिया।
सूर्य से प्राप्त अक्षयपात्र ताम्बे का बर्तन हैं, जो युधिस्ठिर को मिली थी। इसकी खासियत थी कि इसमें फल, फूल, शाक आदि 4 प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहती थी, जब तक कि द्रौपदी परोसती रहती।
अज्ञातवास में पांडवों को बारह वर्ष जंगल में तथा तेरहवाँ वर्ष अज्ञातवास में रहना पड़ा था। उन लोगों ने अपना नाम बदलकर मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर में रहे। युधिष्ठिर ने कंक नामधारी ब्राह्मण बनकर राजा की सभा में द्यूत आदि खेल खिलाने (सभास्तर) का काम स्वीकार किया। भीम ने बल्लव नामधारी रसोइए का, अर्जुन ने बृहन्नला नामधारी नृत्य शिक्षक का, नकुल ने ग्रथिक नाम से अश्वाध्यक्ष का तथा सहदेव ने तंतिपाल नाम से गोसंख्यक का काम अंगीकार किया। द्रौपदी ने रानी सुदेष्णा की सैर्ध्रीं बनकर केश संस्कार का काम अपने जिम्मे लिया।
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