अभिमन्युः युधिष्ठिरं कथम् आश्वसिति? (अभिमन्यु युधिष्ठिर को कैसे आश्वस्त करता है?)
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अभिमन्युः कथयति-अत्र व्यूहभेदने का चिन्ता सति च मयि भवतां सेवके। भवताम् आशीर्भिः व्यूहमुच्छिद्य कौरव-दर्प-दलनं विधाय आचार्याय आत्मानम् धनञ्जयस्यैव अपरा मूर्ति दर्शयिष्यामि।
(अभिमन्यु कहता है-यहाँ व्यूहभेदन की क्या चिन्ता, जब मैं आपका सेवक हूँ। आपके आशीर्वाद से कौरवों के घमण्ड को नष्ट करके आचार्य को मूर्ति रूप अर्जुन दिखाऊँगा)
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