"अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी ने थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।
हाय! रुक गया यहीं संसार, बना सिन्दूर अंगार।"
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वा!वा! क्या शायरी है जबरदस्त
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