अभ्यास
1. चारों वर्गों में ब्राह्मण को समाज रूपी शरीर का मुख क्यों बताया
गया है?
2. सभी वर्गों के भरण-पोषण का दायित्व किस वर्ण पर है और इस
वर्ण के लोग उस दायित्व का निर्वाह किस रूप में करते हैं?
3. समाज की गति और स्थिति से क्या अभिप्राय है? इनको बनाए
रखने में शूद्र वर्ण किस प्रकार सहयोग देता है?
4. क्षत्रियों की समाज में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
5. वर्ण व्यवस्था का आधुनिक स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
Answers
Answer:
1. चारों वर्णों में ब्राह्मण को समाज रूपी शरीर का मुख्य स्थान इसलिए बताया गया है, क्योंकि शरीर की पांचों ज्ञानेंद्रियों मुख में ही स्थित होती हैं और ब्राह्मण ज्ञान प्रदाता होते हैं, जो समाज को ज्ञान प्रदान करते हैं। इस कारण ब्राह्मण को समाज रूपी शरीर का मुख बताया गया है।
2. सभी वर्णों के भरण-पोषण का दायित्व वैश्य पर होता है।
3. समाज की स्थिति और गति शूद्रों के योगदान पर ही निर्भर है। शूद्र वर्ण के लोग अन्य वर्णों जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के लोगों की सेवा आदि कार्य करके सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में अपना सहयोग करते हैं, जिससे अन्य वर्ण के लोग अपने निर्धारित कार्यों को सही गति से संपन्न कर पाते हैं।
Explanation:
4. क्षत्रियों की भूमिका समाज में रक्षा कार्य करने की है। ... समाज में किसी भी तरह का संकट आने पर उस संकट से रक्षा करना क्षत्रियों का दायित्व है। समाज में शासन व्यवस्था का संचालन करना और न्याय प्रदान करना भी क्षत्रियों का दायित्व है
5. वर्ण-व्यवस्था हिन्दू धर्म में सामाजिक कार्योन्नति (ऊन्नति) का एक आधार है। हिंदू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों के कार्यो से समाज का स्थायित्व दिया गया हैै - ब्राह्मण (शिक्षा सम्बन्धी कार्य), क्षत्रिय (शत्रु से रक्षा), वैश्य (वाणिज्य) और शूद्र (उद्योग व कला)
Answer:
1655737827
Explanation:
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