India Languages, asked by bittuj010484, 3 months ago

अभ्यास
1. नियम कितने हैं और कौन-कौन से हैं?
2. शौच नामक नियम का क्या अभिप्राय है?
3. सन्तोष नामक नियम का अर्थ तथा इसके पालन करने के लाभ
बताइए?
4. तप की व्याख्या कीजिए।
5. स्वाध्याय के दो अर्थ बताइए।
6. ईश्वरभक्ति आपके अपने कर्म से कैसे होती है?​

Answers

Answered by anjugoyal954
4

Answer:

1.आष्टांग योग के दूसरे अंग नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं : (1)शौच, (2) संतोष, (3)तप, (4)स्वाध्याय और (5)ईश्वर प्राणिधान।

2. योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है।

3. संतोष नामक नियम का अर्थ तुष्टि, मन का तृप्त हो जाना। संतोष की सिद्धि के लिए क्षुब्ध और निराश करने वाली स्थितियों से बचने का परामर्श दिया गया है। स्थितियों का एक निहितार्थ उन व्यक्तियों से भी संबंधित है, जो हमारे मन, सोच और संकल्प को प्रभावित करते हैं।

Explanation:

4. तपस् या तप का मूल अर्थ था प्रकाश अथवा प्रज्वलन जो सूर्य या अग्नि में स्पष्ट होता है। [1] किंतु धीरे-धीरे उसका एक रूढ़ार्थ विकसित हो गया और किसी उद्देश्य विशेष की प्राप्ति अथवा आत्मिक और शारीरिक अनुशासन के लिए उठाए जानेवाले दैहिक कष्ट को तप कहा जाने लगा

5. स्वयं अपने विवेक से किया गया अध्ययन या अनुशीलन 2. शास्त्रों का अध्ययन; वेदों आदि प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन।

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