Hindi, asked by menon27, 7 months ago

अभ्यास-माला
बोध एवं विचार
1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए:
हिंदी की कृष्णभक्ति-काव्यधारा में कवयित्री मीराबाई को कौन-सा स्थान प्राप्त है।
बचपन में मीराबाई का लालन-पालन उनके दादाजी के ही संरक्षण में क्यों हुआ था?
ज मीराबाई की काव्य-भाषा मूलतः क्या है ?
लोग मीराबाई को क्यों 'बावरी' कहा करते थे।
कर्वायत्री मीराबाई ने अपने मन से कहाँ चलने का आग्रह किया है?
ज​

Answers

Answered by narindervasudev
1

`प्रसिद्ध कवियत्री मीराबाई जिनके पदों का गायन उनकी भक्ति भावना तथा गेयता एवं मधुरता के कारण भारत के प्रायः सभी भागों में होता है,राजस्थान की रहने वाली थीं। मीरा से साधारण जनता तथा विद्वानों का परिचय उनके गीतों के कारण था। ये गीत भी लिखित रूप में न होने के कारण अपने आकार-प्रकार में भाषा और भाव की दृष्टि से बदलते चले गए। इसी का यह परिणाम हुआ कि आज एक भाव के पद विभिन्न भाषाओँ में विभिन्न रूपों में उपलब्ध होते हैं किन्तु इन पदों द्वारा प्राप्त प्रसिद्धि के कारण साहित्यिक तथा ऐतिहासिक विद्वानों की जिज्ञासा मीरा के सम्बन्ध में आवश्यक परिचय प्राप्त करने की हुई। ऐतिहासिक दृष्टि से कर्नल टॉड तथा स्ट्रैटन ने इनके जीवन पर प्रकाश डालने की चेष्टा की और मुंशी देवी प्रसाद मुंसिफ ने मीराबाई का जीवन और उनका काव्य यह पुस्तक लिखकर सर्व प्रथम साहित्यिक दृष्टि से उनके सम्बन्ध में विद्वानों को परिचित कराया।

जीवन वृत्त : मीराबाई जोधपुर के संस्थापक सुप्रसिद्ध ,राठौड़ राजा राव जोधा जी के पुत्र राव दूदा जी की पौत्री तथा रत्नसिंह जी की पुत्री थीं। इनका जन्म कुड़की गाँव में वि ० सं ० १५५५ के आस-पास हुआ था। मीराबाई का श्री गिरधरलाल के प्रति बचपन से ही सहज प्रेम था। किसी साधु से गिरधरलाल की एक सुन्दर मूर्ति इन्हें प्राप्त हुई। मीरा उस मूर्ति को सदा अपने पास रखतीं और समयानुसर उसकी स्नान,पूजा,भोजन आदि की स्वयं व्यवस्था करतीं। एक बार माता से परिहास में यह जानकर की मेरे दूल्हा ये गिरधर गोपाल हैं ~~ मीरा का मन इनकी ओर और भी अधिक झुक गया और ये गिरधर लाल को अपना सर्वस्व समझने लगीं।

यद्यपि मीरा का जन्म अच्छे कुल में हुआ और उनका लालन-पालन भी बहुत स्नेह से हुआ तथापि बचपन से उन्हें कष्टप्रद घटनाओं को सुनना व् देखना पड़ा। मीराबाई की माता उनकी बाल्यावस्था में परलोक सिधार गईं। पिता को लड़ाइयों से कम अवकाश मिलता था अतः इनको राव दूदा जी ने अपने पास मेड़ता बुला लिया। वहाँ उन्हें अपने पितामह के स्नेह के साथ-साथ उनके धार्मिक भाव भी प्राप्त हुए और इस प्रकार मीरा के गिरधर प्रेम का अंकुर यहाँ पल्लवित हो उठा। राव दूदा जी की मृत्यु के उप्ररान्त उनके बड़े पुत्र राव वीरमदेव जी ने इनका पालन-पोषण किया।

सं०१५७३ विक्रमी में मीरा का विवाह मेवाड़ के प्रसिद्ध महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ। मेवाड़ में आकर इनका वैवाहिक जीवन अत्यधिक सुख से व्यतीत होने लगा। किन्तु यह सुख कुछ समय ही रहा। कुँवर भोजराज शीघ्र मीरा को विधवा बनाकर इस संसार से सदा के लिए चले गए। मीरा ने यह दुःसह वैधव्य का समय किसी प्रकार गिरधरलाल की उपासना में व्यतीत करने का निश्चय किया। कुछ वर्ष उपरान्त मीरा के पिता और श्वसुर दोनों का देहान्त हो गया। इन घटनाओं से मीरा का मन संसार से बिल्कुल विरक्त हो गया और वे अपना अधिक से अधिक समय भगवदभजन और साधु सत्संग में व्यतीत करने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने लोक-लाज त्यागकर प्रेमवश भगवान के मन्दिरों में नाचना प्रारम्भ कर दिया। किन्तु ये बातें मेवाड़ के प्रतिष्ठित राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध जान पड़ी अतः महाराणा सांगा के द्वितीय पुत्र रत्नसिंह और उनके छोटे भाई विक्रमजीतसिंह को इनका यह भक्ति भाव विल्कुल न रचा। विक्रमजीतसिंह ने नाना प्रकार के उचित अनुचित साधनों से मीराबाई की इहलीला समाप्त करने की पूरी चेष्टा की। इन अत्याचारों का उल्लेख स्वयं मीरा ने अपने गीतों में किया है :

मीरा मगन भई हरि के गुण गाय।

सांप पिटारा राणा भेज्यो,मीरा हाथ दियो जाय।।

न्हाय धोय जब देखण लागी ,सालिगराम गई पाय।

जहर का प्याला राणा भेज्या ,अमृत दीन्ह बनाय।।

न्हाय धोय जब पीवण लागी हो अमर अंचाय।

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