अभ्यास प्रपत्र-1 खंड 'घ' नाम कक्षा (अनुच्छेद-लेखन एवं पत्र-लेखन 1. दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर अनुच्छेद लिखिए- भ्रष्टाचार : एक ज्वलंत समस्या संकेत बिंदु : • तात्पर्य • राजनैतिक संरक्षण • आत्मसुधार और भ्रष्टाचार मुक्त समाज
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Answer:
Explanation:
भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जो हमारे देश में सदियों से प्रचलित है। विभिन्न स्तरों पर सत्ता और रिश्वतखोरी लोगों को बेईमानी भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है। लोगों को इस बात का अहसास नहीं है कि छोटे व्यक्तिगत लाभ के उनके प्रयास देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को काफी हद तक प्रभावित कर रहे हैं।
यह समझना चाहिए कि किसी की स्थिति के लिए निर्धारित नैतिक मानदंडों का पालन करने से एक मजबूत प्रणाली का निर्माण करने में मदद मिल सकती है जो बदले में समग्र रूप से राष्ट्र के विकास और विकास में मदद करेगी। जब हमारा राष्ट्र बढ़ेगा, तो हम भी बढ़ेंगे और इससे लाभान्वित होंगे। यह प्रत्येक नागरिक के लिए एक बड़ा लाभ होगा।
BHRASHTACHAR PAR SAMPADAK KO PATRA
सेवा में,
सम्पादक मोहदय,
‘द ट्रिब्यून’
मेरठ।
महोदय,
आज हमारे देश में भ्रष्टाचार सारी सीमाएं लांघ रहा है। प्रष्टाचार देश को घुन की तरह खाए जा रहा है। राष्ट्रीय चरित्र में कमी होने के कारण भ्रष्टाचार सब को निगलने को तैयार खड़ा है। देश में हरेक आदमी की दौड़ लगी हुई है–धन पाने की। अनैतिक ढंग से लोग अधिक से अधिक धन इकट्ठा कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार जैसे पाप को रोकने के लिए कुछ भी करना चाहिए। कड़ा से कड़ा दण्ड भी देना चाहिए – यहां तक कि मृत्यु दण्ड भी। प्रष्टाचारी को समाज में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। चौराहे में खड़े करके उसे कोड़े लगाए जाने चाहिएं।
भ्रष्टाचार से पीड़ित देश कभी सुख नहीं पा सकता। इसलिए देश की पुलिस को भी इस दिशा में अधिक काम करना चाहिए। हालांकि पुलिस ने इस दिशा में कई सराहनीय कार्य किए हैं, कई स्कैंडलों का पता लगाया है लेकिन अभी भी इस संबंध में बहुत से आवश्यक कार्य करने जरुरी है। सरकार को इस संबंध में गंभीरता और कठोरता से निपटना चाहिए ताकि देश अनैतिक और भ्रष्टाचारी समाज द्रोहियों से बच सके और जनता को न्याय मिल सके।
आपका,
सुमेश खन्ना 31-B, माडल टाऊन,
मेरठ।
दिनांक-22 जुलाई 19…….
Answer:
आज के आधुनिक युग में व्यक्ति का जीवन अपने स्वार्थ तक सीमित होकर रह गया है । प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ प्रमुख हो गया है । समाज मे अनैतिकता, अराजकता और स्वार्थ से युत) भावनाओं का बोलबाला हो गया है । परिणाम स्वरूप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरूप कुंभला-सा हो गया है ।
इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है । भ्रष्टाचार के इस विकराल रुप को धारण करने का सबसे बड़ा कारण यही है कि इस अर्थप्रधान युग में प्रत्येक ब्यूक्ति धन प्राप्त करने में लगा हुआ है । कमरतोड महंगाई भी इसका एक प्रमुख कारण है ।
मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ जाने के कारण वह उन्हें पूरा करने के लिए मनचाहे तरीकों को अपना रहा है । भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है । किसी भी क्षेत्र में चले जाएं भ्रष्टाचार का फैलाव दिखाई देता है । भारत के सरकारी व गैर-सरकारी विभाग इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हैं ।
आप यहाँ से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है । मंत्री से लेकर संतरी तक को आपको अपनी फाइल बढ़ताने के लिए पैसे का उपहार चढाना ही पड़ेगा । स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है । बस इनके तरीके दूसरे हैं ।
गरीब परीवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है । नामी स्कूलों में दाखिला कराना हो तो डोनेशन के नाम पर मोटी रकम मांगी जाती है। बैंक जो की हर देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है वे भी भ्रष्टाचार के इस रोग से पीडित हैं ।
आप किसी प्रकार के लोन के लिए आवेदन करें पर बिना किसी परेशानी के फाइल निकल जाए यह तो संभव नहीं हो सकता । देश की आंतरिक सुरक्षा का भार हमारे पुलिस विभाग पर होता परन्तु आए दिन यह समाचार आते-रहते हैं की आमुक पूलिस अफसर ने रिश्वत लेकर एक गुनाहगार को छोड़ दिया । भारत को यह भ्रष्टाचार खोखला बना रहा है ।
हमें हमारे समाज में फन फैला रहे इस विकराल नाग को मारना होगा । सबसे पहले आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाना । प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने को इस भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा । यही नहीं शिक्षा में कुछ ऐसा अनिवार्य अंश जोड़ा जाए ।
जिससे हमारी नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति तथा नैतिक प्रतिमानों को संस्कार स्वरूप लेकर विकसित हो । न्यायिक व्यवस्था को कठोर करना होगा तथा सामान्य ज्ञान को आवश्यक सुविधाएँ भी सुलभ करनी होगी । इसी आधार पर आगे बढ़ना होगा तभी इस स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा की जा सकती है ।