Hindi, asked by anupkhanna144, 9 months ago

अभ्यासमाला
खीजत जात माखन खात।
अरुण लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जम्हात।।
कबहुँ रुनझुन, चलत घुटुरन, धूर-धूसर गात।
कबहुँ झुक के अलक खेंचत, नैन जल भर लात।।
कबहुँ तुतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
'सूर' हरि की निरखि सोभा, निमिख तजत न मात।।
•1. माखन खाते हुए कृष्ण क्या कर रहे हैं और क्यों? समझाकर लिखिए।​

Answers

Answered by Anonymous
20

Answer:

ans....

Explanation:

भावार्थ: यह पद राग रामकली में बद्ध है। एक बार श्रीकृष्ण माखन खाते-खाते रूठ गए और रूठे भी ऐसे कि रोते-रोते नेत्र लाल हो गए। भौंहें वक्र हो गई और बार-बार जंभाई लेने लगे। कभी वह घुटनों के बल चलते थे जिससे उनके पैरों में पड़ी पैंजनिया में से रुनझुन स्वर निकलते थे। घुटनों के बल चलकर ही उन्होंने सारे शरीर को धूल-धूसरित कर लिया। कभी श्रीकृष्ण अपने ही बालों को खींचते और नैनों में आंसू भर लाते। कभी तोतली बोली बोलते तो कभी तात ही बोलते। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण की ऐसी शोभा को देखकर यशोदा उन्हें एक पल भी छोड़ने को न हुई अर्थात् श्रीकृष्ण की इन छोटी-छोटी लीलाओं में उन्हें अद्भुत रस आने लगा।

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Answered by Amitabhamitabh
2

Answer:

ans

Explanation:

भावार्थ: यह पद राग रामकली में बद्ध है। एक बार श्रीकृष्ण माखन खाते-खाते रूठ गए और रूठे भी ऐसे कि रोते-रोते नेत्र लाल हो गए। भौंहें वक्र हो गई और बार-बार जंभाई लेने लगे। कभी वह घुटनों के बल चलते थे जिससे उनके पैरों में पड़ी पैंजनिया में से रुनझुन स्वर निकलते थे। घुटनों के बल चलकर ही उन्होंने सारे शरीर को धूल-धूसरित कर लिया। कभी श्रीकृष्ण अपने ही बालों को खींचते और नैनों में आंसू भर लाते। कभी तोतली बोली बोलते तो कभी तात ही बोलते। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण की ऐसी शोभा को देखकर यशोदा उन्हें एक पल भी छोड़ने को न हुई अर्थात् श्रीकृष्ण की इन छोटी-छोटी लीलाओं में उन्हें अद्भुत रस आने लगा।

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