Hindi, asked by straightforward, 1 month ago

abhyas ka mahatwa par nibandh​

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Answered by Rekhakasana83
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Answer:

भूमिका – जीवन में सफलता पाने एवं किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात मनुष्य पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होती है। कबूतर का शावक शुरू में चावल के दाने पर चोंच मारता है पर चोंच पत्थर पर टकराती है। बाद में वही पत्थरों के बीच पड़े चावल के दाने को एक ही बार में उठा लेता है।

अभ्यास की आवश्यकता – अत्यंत महीन और मुलायम तिनकों से बनी रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर से बनी कुएँ की जगत पर निशान पड़ जाते हैं। इन्हीं निशानों को देखकर मंदबुद्धि कहलाने वाले बरदराज के मस्तिष्क में बिजली कौंध गई और उन्होंने परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई की और संस्कृति के वैयाकरणाचार्य बन गए। कुछ ऐसा ही हाल कालिदास का था, जो उसी डाल को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे।

बाद में निरंतर अभ्यास करके संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और विश्व प्रसिद्ध साहित्य की रचना की। ऐसा ही लार्ड डिजरायली के संबंध में कहा जाता है कि जब वे ब्रिटिश संसद में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो ‘संबोधन’ के अलावा कुछ और न कह सके। उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल में जाकर पेड़-पौधों के सामने बोलने का अभ्यास करने लगे। उनका यह अभ्यास रंग लाया और संसद में जब वे दूसरी बार बोलने के लिए खड़े हुए तो उनका भाषण सुनकर सभी सांसद चकित रह गए।

अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन – अभ्यास की महत्ता से मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी भी परिचित हैं। मधुमक्खियाँ निरंतर परिश्रम और अभ्यास से फूलों का पराग एकत्र करती हैं और अमृत तुल्य शहद बनाती हैं। नन्हीं चींटी अनाज का टुकड़ा लेकर बारबार चलने का अभ्यास करती है और अंततः ऊँची चढ़ाई पर भी वह अनाज उठाए चलती जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार अनाज उसके मुँह से गिरता है तो अनेक बार वह स्वयं गिरती है, परंतु वह हिम्मत हारे बिना लगी रहती है और अंततः सफल होती है। इसी तरह पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए जगह-जगह से घास-फूस और लकड़ियाँ एकत्र करते हैं, फिर अत्यंत परिश्रम और अभ्यास से घोंसला बनाने में सफल हो जाते हैं।

सफल का साधन-अभ्यास – सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। खिलाड़ी बरसों अभ्यास करता और मनचाही सफलता प्राप्त करता है। पृथ्वीराज चौहान, राजा दशरथ आदि वीरों द्वारा शब्दबेधी बाण चलाकर निशाना लगाना उनके निरंतर अभ्यास का ही परिणाम था। विज्ञान की सारी दुनिया ही अभ्यास पर टिकी है। विज्ञान की खोजें और अन्य आविष्कार निरंतर अभ्यास से ही संभव हो सके हैं। यहाँ एक खोज के लिए ही अभ्यास करते-करते पूरी उम्र निकल जाती है।

विदयार्थी और अभ्यास – विद्यार्थियों के लिए अभ्यास की महत्ता अत्यधिक है। पुराने ज़माने में जब शिक्षा पाने का केंद्र गुरुकुल होते थे और शिक्षा प्रणाली मौखिक हुआ करती थी, तब भी विद्यार्थी अभ्यास से ही श्लोक और ग्रंथ याद कर लेते थे। कोरे कागज़ की तरह मस्तिष्क लेकर पाठशाला जाने वाले विद्यार्थी अभ्यास करते-करते अपने विषय में स्नातक, परास्नातक होकर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर जाता है।

उपसंहार – अभ्यास सफलता का साधन है। सभी जीवधारियों को सफलता पाने हेतु आलस्य त्यागकर अभ्यास में जुट जाना चाहिए।

Answered by anchal1217
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Answer:

भूमिका – जीवन में सफलता पाने एवं किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात मनुष्य पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होती है। कबूतर का शावक शुरू में चावल के दाने पर चोंच मारता है पर चोंच पत्थर पर टकराती है। बाद में वही पत्थरों के बीच पड़े चावल के दाने को एक ही बार में उठा लेता है।

अभ्यास की आवश्यकता – अत्यंत महीन और मुलायम तिनकों से बनी रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर से बनी कुएँ की जगत पर निशान पड़ जाते हैं। इन्हीं निशानों को देखकर मंदबुद्धि कहलाने वाले बरदराज के मस्तिष्क में बिजली कौंध गई और उन्होंने परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई की और संस्कृति के वैयाकरणाचार्य बन गए। कुछ ऐसा ही हाल कालिदास का था, जो उसी डाल को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे।

बाद में निरंतर अभ्यास करके संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और विश्व प्रसिद्ध साहित्य की रचना की। ऐसा ही लार्ड डिजरायली के संबंध में कहा जाता है कि जब वे ब्रिटिश संसद में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो ‘संबोधन’ के अलावा कुछ और न कह सके। उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल में जाकर पेड़-पौधों के सामने बोलने का अभ्यास करने लगे। उनका यह अभ्यास रंग लाया और संसद में जब वे दूसरी बार बोलने के लिए खड़े हुए तो उनका भाषण सुनकर सभी सांसद चकित रह गए।

अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन – अभ्यास की महत्ता से मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी भी परिचित हैं। मधुमक्खियाँ निरंतर परिश्रम और अभ्यास से फूलों का पराग एकत्र करती हैं और अमृत तुल्य शहद बनाती हैं। नन्हीं चींटी अनाज का टुकड़ा लेकर बारबार चलने का अभ्यास करती है और अंततः ऊँची चढ़ाई पर भी वह अनाज उठाए चलती जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार अनाज उसके मुँह से गिरता है तो अनेक बार वह स्वयं गिरती है, परंतु वह हिम्मत हारे बिना लगी रहती है और अंततः सफल होती है। इसी तरह पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए जगह-जगह से घास-फूस और लकड़ियाँ एकत्र करते हैं, फिर अत्यंत परिश्रम और अभ्यास से घोंसला बनाने में सफल हो जाते हैं।

सफल का साधन-अभ्यास – सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। खिलाड़ी बरसों अभ्यास करता और मनचाही सफलता प्राप्त करता है। पृथ्वीराज चौहान, राजा दशरथ आदि वीरों द्वारा शब्दबेधी बाण चलाकर निशाना लगाना उनके निरंतर अभ्यास का ही परिणाम था। विज्ञान की सारी दुनिया ही अभ्यास पर टिकी है। विज्ञान की खोजें और अन्य आविष्कार निरंतर अभ्यास से ही संभव हो सके हैं। यहाँ एक खोज के लिए ही अभ्यास करते-करते पूरी उम्र निकल जाती है।

विदयार्थी और अभ्यास – विद्यार्थियों के लिए अभ्यास की महत्ता अत्यधिक है। पुराने ज़माने में जब शिक्षा पाने का केंद्र गुरुकुल होते थे और शिक्षा प्रणाली मौखिक हुआ करती थी, तब भी विद्यार्थी अभ्यास से ही श्लोक और ग्रंथ याद कर लेते थे। कोरे कागज़ की तरह मस्तिष्क लेकर पाठशाला जाने वाले विद्यार्थी अभ्यास करते-करते अपने विषय में स्नातक, परास्नातक होकर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर जाता है।

उपसंहार – अभ्यास सफलता का साधन है। सभी जीवधारियों को सफलता पाने हेतु आलस्य त्यागकर अभ्यास में जुट जाना चाहिए।

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