about charles darwin in hindi
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चार्ल्स रोबर्ट डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर के श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनका जन्म उनके पारिवारिक घर दी माउंट में हुआ था। चार्ल्स अपने समृद्ध डॉक्टर रोबर्ट डार्विन की छः संतानों में पांचवे थे। रोबर्ट डार्विन एक मुक्त विचारक थे। चार्ल्स को बचपन से ही प्रकृति में रूचि थी।
1817 में 8 साल की उम्र में ही धर्मोपदेशक द्वारा चलायी जा रही स्कूल में पढ़ते थे और प्रकृति के इतिहास के बारे में जानना चाहते थे। उसी साल जुलाई में उनकी माता का देहांत हो गया था। इसके बाद सितंबर 1818 से चार्ल्स अपने बड़े भाई इरेस्मस के साथ रहने लगे थे और एंग्लिकन श्रेव्स्बुर्री स्कूल में पढ़ते लगे।
चार्ल्स डार्विन से 1825 की गर्मिया प्रशिक्षाण ग्रहण करने वाले डॉक्टर की तरह बितायी थी और अपने पिता के कामो में भी वे सहायता करते थे। अपने भाई के साथ अक्टूबर 1825 तक एडिनबर्घ मेडिकल स्कूल में जाने से पहले तक चार्ल्स यही काम करते थे। लेकिन मेडिकल स्कूल में उन्हें ज्यादा रूचि नही थी इसीलिये वे मेडिकल को अनदेखा करते रहते। बाद में 40 घंटो के लंबे सेशन में उन्होंने जॉन एड्मोंस्टोन से चर्म प्रसाधन सिखा।
डार्विन ने यूनिवर्सिटी के दुसरे साल प्लिनियन सोसाइटी जाना शुरू किया जहाँ प्रकृति-इतिहास से संबंधित विद्यार्थियों का समूह प्रकृति के इतिहास परब चर्चा करते रहते।
बाद में 27 मार्च 1827 तक उन्होंने शरीर रचना विज्ञान पर खोज कर रहे रोबर्ट एडमंड ग्रांट की सहायता भी की थी। यूनिवर्सिटी में वे हमेशा ही प्रकृति का इतिहास जानने की कोशिश करते रहते। विविध पौधों के नाम जानने की कोशिश करते रहते और पौधों के टुकडो को भी जमा करते। ऐसा करते-करते प्रकृतिविज्ञान में उनकी रूचि बढती गयी और धीरे-धीरे उन्होंने प्रकृति की जानकारी इकट्टा करना शुरू किया। बाद में उन्होंने पौधों के विभाजन की जानकारी प्राप्त करना भी शुरू किया।
जब उनके पिता ने उन्हें कैम्ब्रिज के च्रिस्ट कॉलेज में मेडिकल की पढाई के लिये भेजा तब उन्होंने मेडिकल में अपना ध्यान देने की बजाये वे लेक्चर छोड़कर पौधों की जानकारी हासिल करने लगते। इसके बाद वे बॉटनी के प्रोफेसर जॉन स्टीवन के अच्छे दोस्त बन गये और उनके साथ उन्होंने प्रकृतिविज्ञान के वैज्ञानिको से भी मुलाकात की।
उन्हें प्रोफेसर जॉन स्टीवन हेंसलो के साथ रहने वाला इंसान भी कहा जाता था। प्रकृति विज्ञान की साधारण अंतिम परीक्षा में जनवरी 1831 में वे 178 विद्यार्थियों में से दसवे नंबर पर आये थे।
जून 1831 तक डार्विन कैम्ब्रिज में ही रहे थे। वहा उन्होंने पाले की नेचुरल टेक्नोलॉजी का अभ्यास किया और अपने लेखो को भी प्रकाशित किया। उन्होंने प्रकृति के कृत्रिम विभाजन और विविधिकरण का भी वर्णन किया था। प्रकृति से संबंधित जानकारी हासिल करने के लिये उन्होंने कई साल वैज्ञानिक यात्रा भी की थी।
प्रकृति के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिये उन्होंने एडम सेडविक का प्रकृति कोर्स भी किया था। इसके बाद उन्होंने उन्ही के साथ लगातार चार रातो तक यात्रा भी की थी।
1859 में डार्विन ने अपनी किताब “ऑन दी ओरिजिन ऑफ़ स्पिसेस” में मानवी विकास की प्रजातियों का विस्तृत वर्णन भी किया था। 1870 से वैज्ञानिक समाज और साथ ही साधारण मनुष्यों ने भी उनकी इस व्याख्या को मानना शुरू किया।
1930 से 1950 तक कयी वैज्ञानिको ने जीवन चक्र को बताने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नही मिल पायी। लेकिन डार्विन ने सुचारू रूप से वैज्ञानिक तरीके से जीवन विज्ञान में जीवन में समय के साथ-साथ होने वाले बदलाव को बताया था
वन्य जीवो के भौगोलिक विभाजन से वे चकित थे और इसी वजह से डार्विन से विस्तृत खोज करना शुरू किया और 1838 में प्रकृति से संबंधित अपनी व्याख्या प्रकाशित की। इसके साथ ही उन्होंने विचारो को दुसरे बहुत से प्रकृतिविज्ञानीयो के साथ भी बाटा।
लेकिन जीव विज्ञान पर पुरी तरह से खोज करने के लिये उन्हें थोड़े समय की जरुरत थी। जब अल्फ्रेड रुस्सेल वल्लास ने उन्हें समान विचारो पर अपना निबंध भेजा तभी 1858 में उन्होंने अपनी व्याख्या लिखी, जिसमे दोनों के सह-प्रकाशन से उन्होंने दोनों व्याख्याओ को प्रस्तुत किया था। डार्विन की प्रकृति से संबंधित व्याख्या के बाद प्रकृति में होने वाले विविधिकरण को लोग आसानी से जान पाये थे।
1871 में उन्होंने मानवी प्रजातियों और उनके लैंगिक चुनाव की भी जाँच की। पौधों पर की गयी उनकी खोज को बहुत सी किताबो में प्रकाशित भी किया गया था। और उनकी अंतिम किताब में सब्जियों में फफूंद के निर्माण की क्रिया का वर्णन था, उन्होंने केचुए की जाँच की थी और तेल पर होने वाले उनके प्रभाव को जाना था।
चार्ल्स डार्विन ने मानवी इतिहास के सबसे प्रभावशाली भाग की व्याख्या दी थी और इसी वजह से उन्हें कयी पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया था।
मृत्यु –
1882 में एनजाइना पेक्टोरिस की बीमारी की वजह से दिल में सक्रमण फैलने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी थी। सूत्रों के अनुसार एनजाइना अटैक और ह्रदय का बंद पड़ना ही उनकी मृत्यु का कारण बना।
19 अप्रैल 1882 को उनकी मृत्यु हुई थी। अपने परिवार के लिये उनके अंतिम शब्द थे:
“मुझे मृत्यु से जरा भी डर नही है – तुम्हारे रूप में मेरे पास एक सुंदर पत्नी है – और मेरे बच्चो को भी बताओ की वे मेरे लिये कितने अच्छे है।”
उन्होंने अपनी इच्छा व्यतीत की थी उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मैरी चर्चयार्ड में दफनाया जाये लेकिन डार्विन बंधुओ की प्रार्थना के बाद प्रेसिडेंट ऑफ़ रॉयल सोसाइटी ने उन्हें वेस्टमिनिस्टर ऐबी से सम्मानित भी किया। इसके बाद उन्होंने अपनी सेवा कर रही नर्सो का भी शुक्रियादा किया। और अपने अंतिम समय में साथ रहने के लिये परिवारजनों का भी शुक्रियादा किया।
उनकी अंतिम यात्रा 26 अप्रैल को हुई थी जिसमे लाखो लोग, उनके सहकर्मी और उनके सह वैज्ञानिक, दर्शनशास्त्री और शिक्षक भी मौजूद थे।
1817 में 8 साल की उम्र में ही धर्मोपदेशक द्वारा चलायी जा रही स्कूल में पढ़ते थे और प्रकृति के इतिहास के बारे में जानना चाहते थे। उसी साल जुलाई में उनकी माता का देहांत हो गया था। इसके बाद सितंबर 1818 से चार्ल्स अपने बड़े भाई इरेस्मस के साथ रहने लगे थे और एंग्लिकन श्रेव्स्बुर्री स्कूल में पढ़ते लगे।
चार्ल्स डार्विन से 1825 की गर्मिया प्रशिक्षाण ग्रहण करने वाले डॉक्टर की तरह बितायी थी और अपने पिता के कामो में भी वे सहायता करते थे। अपने भाई के साथ अक्टूबर 1825 तक एडिनबर्घ मेडिकल स्कूल में जाने से पहले तक चार्ल्स यही काम करते थे। लेकिन मेडिकल स्कूल में उन्हें ज्यादा रूचि नही थी इसीलिये वे मेडिकल को अनदेखा करते रहते। बाद में 40 घंटो के लंबे सेशन में उन्होंने जॉन एड्मोंस्टोन से चर्म प्रसाधन सिखा।
डार्विन ने यूनिवर्सिटी के दुसरे साल प्लिनियन सोसाइटी जाना शुरू किया जहाँ प्रकृति-इतिहास से संबंधित विद्यार्थियों का समूह प्रकृति के इतिहास परब चर्चा करते रहते।
बाद में 27 मार्च 1827 तक उन्होंने शरीर रचना विज्ञान पर खोज कर रहे रोबर्ट एडमंड ग्रांट की सहायता भी की थी। यूनिवर्सिटी में वे हमेशा ही प्रकृति का इतिहास जानने की कोशिश करते रहते। विविध पौधों के नाम जानने की कोशिश करते रहते और पौधों के टुकडो को भी जमा करते। ऐसा करते-करते प्रकृतिविज्ञान में उनकी रूचि बढती गयी और धीरे-धीरे उन्होंने प्रकृति की जानकारी इकट्टा करना शुरू किया। बाद में उन्होंने पौधों के विभाजन की जानकारी प्राप्त करना भी शुरू किया।
जब उनके पिता ने उन्हें कैम्ब्रिज के च्रिस्ट कॉलेज में मेडिकल की पढाई के लिये भेजा तब उन्होंने मेडिकल में अपना ध्यान देने की बजाये वे लेक्चर छोड़कर पौधों की जानकारी हासिल करने लगते। इसके बाद वे बॉटनी के प्रोफेसर जॉन स्टीवन के अच्छे दोस्त बन गये और उनके साथ उन्होंने प्रकृतिविज्ञान के वैज्ञानिको से भी मुलाकात की।
उन्हें प्रोफेसर जॉन स्टीवन हेंसलो के साथ रहने वाला इंसान भी कहा जाता था। प्रकृति विज्ञान की साधारण अंतिम परीक्षा में जनवरी 1831 में वे 178 विद्यार्थियों में से दसवे नंबर पर आये थे।
जून 1831 तक डार्विन कैम्ब्रिज में ही रहे थे। वहा उन्होंने पाले की नेचुरल टेक्नोलॉजी का अभ्यास किया और अपने लेखो को भी प्रकाशित किया। उन्होंने प्रकृति के कृत्रिम विभाजन और विविधिकरण का भी वर्णन किया था। प्रकृति से संबंधित जानकारी हासिल करने के लिये उन्होंने कई साल वैज्ञानिक यात्रा भी की थी।
प्रकृति के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिये उन्होंने एडम सेडविक का प्रकृति कोर्स भी किया था। इसके बाद उन्होंने उन्ही के साथ लगातार चार रातो तक यात्रा भी की थी।
1859 में डार्विन ने अपनी किताब “ऑन दी ओरिजिन ऑफ़ स्पिसेस” में मानवी विकास की प्रजातियों का विस्तृत वर्णन भी किया था। 1870 से वैज्ञानिक समाज और साथ ही साधारण मनुष्यों ने भी उनकी इस व्याख्या को मानना शुरू किया।
1930 से 1950 तक कयी वैज्ञानिको ने जीवन चक्र को बताने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नही मिल पायी। लेकिन डार्विन ने सुचारू रूप से वैज्ञानिक तरीके से जीवन विज्ञान में जीवन में समय के साथ-साथ होने वाले बदलाव को बताया था
वन्य जीवो के भौगोलिक विभाजन से वे चकित थे और इसी वजह से डार्विन से विस्तृत खोज करना शुरू किया और 1838 में प्रकृति से संबंधित अपनी व्याख्या प्रकाशित की। इसके साथ ही उन्होंने विचारो को दुसरे बहुत से प्रकृतिविज्ञानीयो के साथ भी बाटा।
लेकिन जीव विज्ञान पर पुरी तरह से खोज करने के लिये उन्हें थोड़े समय की जरुरत थी। जब अल्फ्रेड रुस्सेल वल्लास ने उन्हें समान विचारो पर अपना निबंध भेजा तभी 1858 में उन्होंने अपनी व्याख्या लिखी, जिसमे दोनों के सह-प्रकाशन से उन्होंने दोनों व्याख्याओ को प्रस्तुत किया था। डार्विन की प्रकृति से संबंधित व्याख्या के बाद प्रकृति में होने वाले विविधिकरण को लोग आसानी से जान पाये थे।
1871 में उन्होंने मानवी प्रजातियों और उनके लैंगिक चुनाव की भी जाँच की। पौधों पर की गयी उनकी खोज को बहुत सी किताबो में प्रकाशित भी किया गया था। और उनकी अंतिम किताब में सब्जियों में फफूंद के निर्माण की क्रिया का वर्णन था, उन्होंने केचुए की जाँच की थी और तेल पर होने वाले उनके प्रभाव को जाना था।
चार्ल्स डार्विन ने मानवी इतिहास के सबसे प्रभावशाली भाग की व्याख्या दी थी और इसी वजह से उन्हें कयी पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया था।
मृत्यु –
1882 में एनजाइना पेक्टोरिस की बीमारी की वजह से दिल में सक्रमण फैलने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी थी। सूत्रों के अनुसार एनजाइना अटैक और ह्रदय का बंद पड़ना ही उनकी मृत्यु का कारण बना।
19 अप्रैल 1882 को उनकी मृत्यु हुई थी। अपने परिवार के लिये उनके अंतिम शब्द थे:
“मुझे मृत्यु से जरा भी डर नही है – तुम्हारे रूप में मेरे पास एक सुंदर पत्नी है – और मेरे बच्चो को भी बताओ की वे मेरे लिये कितने अच्छे है।”
उन्होंने अपनी इच्छा व्यतीत की थी उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मैरी चर्चयार्ड में दफनाया जाये लेकिन डार्विन बंधुओ की प्रार्थना के बाद प्रेसिडेंट ऑफ़ रॉयल सोसाइटी ने उन्हें वेस्टमिनिस्टर ऐबी से सम्मानित भी किया। इसके बाद उन्होंने अपनी सेवा कर रही नर्सो का भी शुक्रियादा किया। और अपने अंतिम समय में साथ रहने के लिये परिवारजनों का भी शुक्रियादा किया।
उनकी अंतिम यात्रा 26 अप्रैल को हुई थी जिसमे लाखो लोग, उनके सहकर्मी और उनके सह वैज्ञानिक, दर्शनशास्त्री और शिक्षक भी मौजूद थे।
GAnshu1:
how did you type this much fastly
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