Hindi, asked by yeasmin5681, 1 year ago

About the rigths of women which is in hindi not given

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Answered by khushaljohar
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सृष्टि-सृजन और मानवीय सभ्यता के विकास में स्त्री-पुरुष दोनों की समान सृजनात्मक भूमिका रही है । ये दोनों एक-दूसरे के पूरक एवं सहयोगी हैं । नारी अपने विविध रूपों में पुरूष को संवर्धन, प्रोत्साहन और शक्ति प्रदान करती है ।

माता के रूप में नारी, पुरूष के चरित्र की संरोपण भूमि है और पत्नी के बतौर वह पुरूष-उत्कर्ष का प्रसार-स्तंभ है । धन वैभव, शक्ति और ज्ञान प्राप्ति के लिए नारी के विविध स्वरूपों की आराधना की जाती है । विभिन्न अनुष्ठानों एवं उत्सवों के रचनात्मक स्वरूप के माध्यम से समाज व संस्कृति को दैविक वैधता प्रदान की गई है । नारी को मानवीय गुणों से सराबोर एवं मूल्यवाहक के रूप में भी स्थापित किया गया है ।

भित्र-भित्र देश, काल एवं परिस्थितियों में महिलाओं की स्थिति, योगदान एवं स्वरूप को लेकर मतांतर रहे हैं । साहित्य एवं ज्ञान लोक ने नारी को गृह कार्य एवं काम प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है, तो काव्यकारों ने सौंदर्य-बोधक स्वरूप में । धार्मिक ग्रंथों व पुराणों में महिला को मोक्ष प्राप्ति में बाधक माना गया ।

सामाजिक संरचना व्यवस्था परम्पराएँ रूढियाँ एवं रीति रिवाज-ये मानवकृत होकर भी मानव विभेदक हैं । इन्होंने समाजीकरण व संस्कारगत व्यवहार व मूल्यों के आधार पर स्त्री-पुरूप के मध्य विभेदीकरण की एक लकीर खींच दी । नारी निर्माण की इस प्रक्रिया से समाज में महिलाओं की स्थिति असमानता, शोषण व उत्पीड़न के अनुभवों से जुड़ती चली गई । उसे समाज में द्वितीय दर्जा दे दिया गया ।

भारतीय संदर्भ में महिलाओं की स्थिति या दशा उतार चढ़ाव के दौर से गुजरती रही है । भिन्न-भिन्न कालों में उसकी भित्र महत्ता स्थापित की गई । बौद्धिक व औद्योगिक क्रांति के इस नए दौर में महिलाओं की महत्ता स्वीकृत की जाने लगी है ।

व्यवस्थित पूर्वाग्रह, अभिवृत्तियों, तौर-तरीकों, रीति-रिवाजों एवं विभिन्न रूढ़ीजन्य धार्मिक मान्यताओं की प्रक्रियाओं को गति मिली है । महिला विकास यात्रा संक्रमण से गुजर रही है जिसमें सकारात्मक एवं नकारात्मक तत्वों का समन्वय है ।

द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत विश्व में स्त्री अधिकारों व प्रस्थिति बाबत विचार मंथन होने लगा । अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर नजर डालें तो सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में स्त्री-पुरूष समानता का प्रावधान किया गया । स्त्रियों के विरूद्ध भेदभाव, शोषण व दमन को समाप्त करने और मानवीय अधिकार देने की चर्चा की गई 
इस दिशा में भूमिगत विश्व (स्त्री) कनवेंशन 1939, कार्य करने का अधिकार (स्त्री) कनवेंशन 1948, समान पारिश्रमिक कनवेंशन 1951, भेदभाव कनवेंशन 1958, पारिवारिक दायित्व के साथ कर्मकार कनवेंशन 1981 पारित किए गए । 1975 में विश्व महिला वर्ष मनाया गया । स्त्रियों के लिए एक आयोग संस्थापित कर महिलाओं पर विभित्र विश्व सम्मेलन आयोजित किए गए ।

महिलाओं के लिए 1985 में संयुक्त राष्ट्र विकास निधि बनाई गई । स्त्री विकास की दिशा में अन्तर्राष्ट्रीय अनुसंधान व प्रशिक्षण संस्थान 1981 में स्थापित किया गया । महिलाओं की समता, शांति व समूचे विकास हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके महिला संगठन समूह व संस्थाएँ कार्यरत हैं । समूची दुनिया में महिलाएँ दोयम दर्जे पर है ।


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