about universe in hindi
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हम जानते हैं कि जिस पृथ्वी पर हम आवास एवं विचरण करते हैं, वह ब्रह्माण्ड तथा सौरमंडल का एक छोटा-सा भाग है। पृथ्वी सौर-परिवार का एक सदस्य हैं, जिसका मुखिया सूर्य हैं। सूर्य पृथ्वी पर जीवों की शक्ति का एक प्रमुख स्रोत है।
सौरमंडल का स्वामी होने के बावजूद सूर्य भी विशाल आकाशगंगा-दुग्धमेखला नाम की मंदाकिनी का एक साधारण और औसत तारा है। सूर्य 25 Km/S की गति से आकाशगंगा के केंद्र के चारों तरफ परिक्रमा करता है। आकाश-गंगा की एक परिक्रमा को पूरी करने में सूर्य को लगभग 25 करोड़ साल लगते हैं। 25 करोड़ साल की इस लम्बी अवधि को ब्रह्माण्ड-वर्ष या कॉस्मिक-इयर_Cosmic-Year के नाम से जाना जाता है।
पृथ्वी पर मनुष्य के सपूर्ण अस्तित्व-काल में सूर्य ने आकाश-गंगा की एक भी परिक्रमा पूरी नहीं की है। परन्तु कुछ चमकते पिंडो को ही देखकर मनुष्य की उत्कंठा शांत नही हुई। आज से सदियों पूर्व जब आज की तरह वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान उपलब्ध नही था, फिर भी हमारे पूर्वजों ने उच्चस्तरीय वैज्ञानिक खोजें कीं। इनमें आर्यभट, टालेमी, अरस्तु, पाईथागोरस, भास्कर इत्यादि खगोल-विज्ञानियों के नाम अग्रणी हैं। इन खगोल-वैज्ञानिको ने सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों के गति का जो अध्ययन किया, वह आज भी तथ्यपरक एवं सटीक हैं। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि खगोलशास्त्र विज्ञान की सबसे पुरानी शाखा है।
सौरमंडल का स्वामी होने के बावजूद सूर्य भी विशाल आकाशगंगा-दुग्धमेखला नाम की मंदाकिनी का एक साधारण और औसत तारा है। सूर्य 25 Km/S की गति से आकाशगंगा के केंद्र के चारों तरफ परिक्रमा करता है। आकाश-गंगा की एक परिक्रमा को पूरी करने में सूर्य को लगभग 25 करोड़ साल लगते हैं। 25 करोड़ साल की इस लम्बी अवधि को ब्रह्माण्ड-वर्ष या कॉस्मिक-इयर_Cosmic-Year के नाम से जाना जाता है।
पृथ्वी पर मनुष्य के सपूर्ण अस्तित्व-काल में सूर्य ने आकाश-गंगा की एक भी परिक्रमा पूरी नहीं की है। परन्तु कुछ चमकते पिंडो को ही देखकर मनुष्य की उत्कंठा शांत नही हुई। आज से सदियों पूर्व जब आज की तरह वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान उपलब्ध नही था, फिर भी हमारे पूर्वजों ने उच्चस्तरीय वैज्ञानिक खोजें कीं। इनमें आर्यभट, टालेमी, अरस्तु, पाईथागोरस, भास्कर इत्यादि खगोल-विज्ञानियों के नाम अग्रणी हैं। इन खगोल-वैज्ञानिको ने सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों के गति का जो अध्ययन किया, वह आज भी तथ्यपरक एवं सटीक हैं। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि खगोलशास्त्र विज्ञान की सबसे पुरानी शाखा है।
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